गद्यांश 1(गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।)
आदर्श विद्यार्थी को कुछ भी कठिन या असंभव नहीं समझना चाहिए क्योंकि परिश्रम ही तो उसका सहयोगी है। वह उद्यम करेगा तो निश्चय ही सफलता उसके चरण चूमेगी।पुरुषार्थी के लिए प्रत्येक असंभव कार्य भी संभव तथा कठिन कार्य भी सरल हो जाता है। आदर्श विद्यार्थी को अपने विद्यार्थी जीवन में कभी भी सुख की कामना नहीं करनी चाहिए।तभी वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है तभी विद्या उसके व्यक्तित्व का अंग बन सकती है।सभी विद्यार्थियों को यह मन में धारण कर लेना चाहिए कि सुख की कामना और विद्या की प्राप्ति ये दोनों दो विरोधी बातें हैं।सुख चाहने वाले को विद्या नहीं मिल सकती और विद्या चाहने वाले को उसी क्षण सुख की प्राप्ति संभव नहीं है।निरंतर परिश्रम ही विद्या प्राप्ति का मूल मंत्र है। यदि कोई यह सोचे कि मैं परिश्रम नहीं करूँगा और मैं सुखी हो जाऊँगा तो यह उसकी भूल है।आलसी पड़े रहने में कोई सुख नहीं। प्रत्युत इससे मनुष्य को दुख ,निराशा और बुरी भावनाएँ आकर घेर लेती हैं ।वे सभी मनुष्यों को पथभ्रष्ट करने में तथा उसके भविष्य को अंधकारमय करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
1. सफलता किसके चरण चूमती है?
aआदर्श परिश्रमी विद्यार्थी के
bआज्ञाकारी विद्यार्थी के
cअनुशासित विद्यार्थी के
dसुख चाहने वाले विद्यार्थी के
2.किसके लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाता है?
aकिसी भी विद्यार्थी के लिए
bपुरुषार्थी के लिए
cआज्ञाकारी एवं विनम्र विद्यार्थी के लिए
dपरोपकारी के लिए
3.कब एक आदर्श विद्यार्थी के लिए विद्या उसके व्यक्तित्व का अंग बन जाती है
aविद्यार्थी जीवन में बड़ों का सम्मान करने पर
bविद्यार्थी जीवन में अनुशासन में रहने पर
cविद्यार्थीजीवन में सुख की कामना न करने पर
dविद्यार्थी जीवन में केवल पुस्तकें खरीदने पर
4.परिश्रम किसका सहयोगी है?
aआदर्श विद्यार्थी का
bआज्ञाकारी विद्यार्थी का
cमृदुभाषी विद्यार्थी का
dस्वस्थ विद्यार्थी का
5.किसमें कोई सुख नहीं मिलता ?
aआलसी पड़े रहने में
bपरिश्रम करने में
cसमय का सदुपयोग करने में
dसत्य बोलने में
Answers
आदर्श विद्यार्थी को कुछ भी कठिन या असंभव नहीं समझना चाहिए क्योंकि परिश्रम ही तो उसका सहयोगी है। वह उद्यम करेगा तो निश्चय ही सफलता उसके चरण चूमेगी। पुरुषार्थी के लिए प्रत्येक असंभव कार्य भी संभव तथा कठिन कार्य भी सरल हो जाता है। आदर्श विद्यार्थी को अपने विद्यार्थी जीवन में कभी भी सुख की कामना नहीं करनी चाहिए। तभी वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है तभी विद्या उसके व्यक्तित्व का अंग बन सकती है।सभी विद्यार्थियों को यह मन में धारण कर लेना चाहिए कि सुख की कामना और विद्या की प्राप्ति ये दोनों दो विरोधी बातें हैं। सुख चाहने वाले को विद्या नहीं मिल सकती और विद्या चाहने वाले को उसी क्षण सुख की प्राप्ति संभव नहीं है। निरंतर परिश्रम ही विद्या प्राप्ति का मूल मंत्र है। यदि कोई यह सोचे कि मैं परिश्रम नहीं करूँगा और मैं सुखी हो जाऊँगा तो यह उसकी भूल है। आलसी पड़े रहने में कोई सुख नहीं। प्रत्युत इससे मनुष्य को दुख, निराशा और बुरी भावनाएँ आकर घेर लेती हैं। वे सभी मनुष्यों को पथभ्रष्ट करने में तथा उसके भविष्य को अंधकारमय करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
दिए गए पद्यांश के आधार पर सभी प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार है...
1. सफलता किसके चरण चूमती है?
➲ a. आदर्श परिश्रमी विद्यार्थी के
2. किसके लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाता है?
➲ b. पुरुषार्थी के लिए
3. कब एक आदर्श विद्यार्थी के लिए विद्या उसके व्यक्तित्व का अंग बन जाती है
➲ c. विद्यार्थी जीवन में सुख की कामना न करने पर
4. परिश्रम किसका सहयोगी है?
➲ a. आदर्श विद्यार्थी का
5. किसमें कोई सुख नहीं मिलता ?
➲ a. आलसी पड़े रहने में
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1 ka a
2 ka c
3 ka c
4 ka a
5 ka a