गद्यांश 1
देना ही देवता की वास्तविक विशेषता है। असहाय व्यक्ति का
शोषण करने वाला किसी को केवल दुःख दे सकता है। देने का
काम वही कर सकता है जो स्वयं भी परिपूर्ण होता है। देवता
स्वयं को भी देता है और दूसरों को भी। जिसने स्वयं को न
दिया, वह दूसरों को क्या देगा? हम लोग अक्सर कहते हैं कंजूस
किसी को कुछ नहीं देता। यह बात ठीक नहीं है कि कृपण दूसरे
को नहीं देता, पर कृपण स्वयं को भी कहाँ देता है? वह
दीन-हीन की तरह रहता है और उसी तरह मर भी जाता है। देने
से किसी व्यक्ति की संपन्नता सार्थक होती है। धन की तीन
गतियाँ होती है-उपभोग, दान और नाश। जिसने धन का उपभोग
नहीं किया, दान नहीं किया, उसके धन
लिए एक ही गति
बचती है-नाश। घूस और अनैतिक ढंग से हड़पकर दूसरों के
धन से घर भरने वालों का यही अंत होता है। सत्ता, व्यापार,
राजनीति में इस प्रकार सफेदपोश लुटेरे छुपे हुए हैं। जो हम
अर्जित करते हैं, वह हमारा जीवन है। धन हमारे जीवन का केंद्र
नहीं है। धन एक संसाधन है, जिससे हम अपनी जिम्मेदारियों को
निभाते हैं। धन एक सहायक-सामग्री है, जिससे हम जीवन के
उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। धन का काम है कि वह हमें सुख दे।
यह सुख हमे तीन क्रियाओं से मिलता है-धन के अर्जन से, धन
के उपभोग से और धन के दान से। इन तीन क्रियाओं से धन
हमारी सेवा करता है। बाकी क्रियाओं से हम धन की सेवा करते
है। कंजूस धन को बचा लेते है। अपव्ययी उसे उड़ा देते है,
लाला उसे उधार देते हैं। चोर उसे चुरा लेते हैं, धनी उसे बढ़ा
देते है, जुआरी उसे गंवा देते हैं और मरने वाले उसे पीछे छोड़
जाते है।
प्रश्न
1 प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर बताइए कि कंजूस व्यक्ति का
जीवन किस प्रकार का होता है?
(2)
। गद्याश के अनुसार धन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
ना हमे सुख किन क्रियाओं से मिलता है?
(2)
TV निम्नलिखित शब्दो के विपरीतार्थक शब्द लिखिए
(0 अपव्ययी
(2)
प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्थक लिखिए।
Answers
Answered by
1
Answer:
वशडद ड हनभष ऑटढ न टन ब अ ड व ठृढ
Similar questions