गद्यांश 4
दो भाई थे। वे व्यापारी थे| उन्हें हर हालत में रात में ही नाव से सफ़र करके एक शहर से किसी दूसरे शहर में पहुँचना था। अत:
अपनी योजना के अनुसार दोनों भाई रात को नदी पर पहुँच गए। रात में वहाँ बहुत घना कोहरा था। आसपास कुछ नहीं दिख रहा
था जैसे-तैसे उन्होंने एक नाव मिल गया और उसमें जाकर बैठ गए। अपने-अपने चप्पुओं से वे नाव को खेने लगे। रात भर उन्होंने कड़ी मेहनत की। सुबह तक थकावट हावी होने लगी थी।
पूरी रात बीत गई सुबह जब कोहरा हटा तो उन्हें बुरी तरह झटका लगा। उन्होंने देखा कि वह नाव अभी भी वहां थी। वह अपनी जगह से ज़रा भी आगे नहीं बढ़ी थी। अब नाव क्यों आगे नहीं बढी ? दरअसल,
वह नाव को रस्सी को खोलना भूल गए थे। हम भी जिंदगी में सफल होने के लिए
प्रयास करते हैं। हम आगे बढ़ना तो चाहते हैं, पर पिछले दुख, असफलताओं, तकलीफ़ों और समस्याओं को नहीं छोड़ते। ध्यान
रखें, यदि हम अपने दुखों को, अपनी समस्याओं को और असफलताओं को नहीं छोड़ेंगे तो वह खुद हमें पकड़कर, हमें बाँधकर
रखेगी। इसलिए बेहतरी यही है कि उन्हें पीछे छोड़कर हम आगे की सोचें। जिस प्रकार नदी निरंतर बहती रहती है और आगे
बढ़ती रहती है उसी प्रकार मनुष्य को वक्त के साथ चलते रहना चाहिए। हमें यह समझ लेना चाहिए कि गुजरा वक्त कभी वापस
नहीं आता। अर्थात जो बीत गई सो बीत गई। जरूरी नहीं कि पुरानी समस्याएँ और पुरानी असफलताएँ फिर हमारा रास्ता रोकें।
जरूरत है तो बस उनसे सीख लेकर नए सिरे से जीवन की किश्ती को आगे बढ़ाते रहना और अपनी सुहानी मंजिल को पाना।
Please tell its title and moral. please...
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(दुख से सुख तक )
शीर्षक है
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Answer:
answer is given below
Explanation:
the moral is वक्त
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