गद्यांश के आधार पर 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' का अर्थ बताइए
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संस्कृत का बहुत प्रसिद्ध लघु सूत्र है "अति सर्वत्र वर्जयेत्" जिसका हिंदी शब्दार्थ है कि "अति करने से हमेशा बचना चाहिए", अति का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है l
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अति सर्वत्र वर्जयेत् का अर्थ है की हमे अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।
- हमे अपनी मर्यादा को पार नहीं करना चाहिए और उसे बढ़ावा देना चाहिए। भारत की ये ख़ास विशेषता है। यहाँ की मर्यादाएं ही तो इसे दुनिया के सब ही देशों से अलग बनाती है।
- हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था यहाँ दूध की नदियां बहती थी परन्तु अब जनसँख्या के कारण ये सब से हमारा देश विपरीत हो गया है।
- इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है बाल विवाह, बहु विवाह, अशिक्षा, बेरोज़गारी सब बढ़ती चली जा रही है। परन्तु इन सब के बाद भी हमे अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाइये।
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