गद्यांशो के संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :और तब अपने स्नेह में प्रगल्भ उस बालक के सिर पर हाथ रखकर मैं भावातिरेक से ही निश्चय हो रही ।उस तट पर किसी गुरु को किसी शिष्य से कभी ऐसी दक्षिणा मिली होगी, ऐसा मुझे विश्वास नहीं,परंतु उस दक्षिणा के सामने संसार में अब तक के सारे आदान-प्रदान फीके जान पङे।
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संदर्भ-
‘महादेवी वर्मा’ द्वारा लिखित ‘घीसा’ नामक यह कहानी एक विधवा मां और उसके बच्चे की मर्मस्पर्शी कथा है। ‘घीसा’ नामक वह बालक कैसे थोड़े ही दिनों में अपने व्यवहार से लेखिका को प्रभावित कर देता है इसका बहुत ही संवेदनशील वर्णन इस कहानी में किया गया है।
व्याख्या-
‘घीसा’ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित अत्यंत मर्मस्पर्शी कथानक है। महादेवी गंगा पार झूँसी के खंडहर और उसके आसपास के गाँवों के प्रति अपने आकर्षण के कारण वहां जब भी समय मिलता था, घूमने जाया करती थी। उन गाँवों में घूमते हुए उनका ध्यान इस बात की ओर गया कि वहां के निर्धन बच्चों को पढ़ाना चाहिए। सप्ताह में एक दिन वह गंगा पार बच्चों को पढ़ाने लगीं। उन्हीं बच्चों में घीसा भी था। घीसा एक विधवा स्त्री का बेटा था जिसका पति घीसा के पैदा होने से छह महीने पहले ही हैजे से मर गया था। घीसा की मां लोगों के घर पर लीपनेपोतने का काम करके अपने और अपने बेटे का गुजारा करती थी। घीसा का नाम घीसा इसलिए पड़ा कि पिता के न होने और घर में कोई देखभाल करने वाला न होने के कारण घीसा की मां काम पर घीसा को भी साथ ले जाती थी और वहां वह जमीन पर पेट के बल घिसटता रहता था और अपनी मां के आसपास घूमता रहता था। इसी कारण उसका नाम घीसा पड़ गया था।
लेखिका ने जब घीसा को पढ़ाने का निश्चय किया तो गाँववालों ने विरोध किया। गाँववालों के विरोध के बावजूद घीसा महादेवी वर्मा की पाठशाला में पढ़ने लगा। अपने बच्चों को पढ़ाने की इच्छा घीसा की मां में थी और पढ़ने की इच्छा घीसा में भी थी। महादेवी जी पढ़ाने के बहुत कम समय निकाल पाती थी पर इस थोड़े समय में ही पढ़ाई के प्रति घीसा के लगाव, उसकी सादगी और अपने गुरु के प्रति उसकी भक्ति को महादेवी जी ने पहचान लिया था। गुरु द्वारा कही गयी प्रत्येक बात उसके लिए ऐसा आदेश थी जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता था।
प्रस्तुत पंक्तियों का सार...
ऊपर की पंक्तियां उस प्रसंग का वर्णन है जब जब पाठशाला से अवकाश लेकर महादेवी वर्मा कुछ महीने के लिए जा रही होती है तो घीसा उन्हें भेंट देने के लिए तरबूज लेकर आता है और उस तरबूज को हासिल करने के लिए वह अपना नया कुर्ता तक दे देता है, यह जानकर महादेवी द्रवित हो जाती है। और वो अपने इस शिष्य की गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा से अविभूत हो जाती हैं और उन्हें अनुभव होता है घीसा जो तरबूज लेकर आया था वो ऐसी गुरुदक्षिणा है जिसका कोई मोल नही था।
जब महादेवी कुछ महीनों बाद वापस लौटती है तो उन्हें मालूम पड़ता है कि घीसा अब इस दुनिया में नहीं रहा।
Answer:
घीसा ने क्या देखकर तरबूज खरीदा