गद्यांश में 'मैं' किसका प्रतीक है
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जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्यपूर्ण और सत्यप्राण, मैं उसका प्रेमी बनूं नाथ! जिससे मानव-हित हो समान!
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जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्यपूर्ण और सत्यप्राण, मैं उसका प्रेमी बनूं नाथ! जिससे मानव-हित हो समान!
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