गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर लिखिए
पुल बनाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गए थे। जब भी पुल बनता था, एक मौसम भी नहीं निकालता था। सरदी में बनता था, तो गरमी में टूट जाता था। पहाड़ों से आनेवाले पानी का वेग बहुत तेज़ होता था। दरिया के किनारे भी टूट जाते थे। मिट्टी बह जाती थी। लोग मिट्टी भरकर लकड़ी का पुल बनाते थे।कोई सीमेंट का पक्का पुल तो बनता ही नहीं था। भला मिट्टी का पुल कैसे टिका रहता! और नाव, उसका भी प्रयास किया गया। कुछ लोगों ने सोचा कि पुल नहीं बनता और लोग दरिया को पैदल भी पार नहीं कर सकते, तो नाव ही बना लें। उसी पर चढ़कर दरिया पार कर लिया करेंगे। परंतु हुआ यों कि जब पहली नाव बनी, तो मंगू दूधवाला सवेरे-सवेरे मुहम्मद खान से बोला, "खान साहब, नाव में ज़हरीले साँप घुस गए और उन्होंने दो मुसाफ़िरों को डस लिया। अब मुखिया जी ने कहा है कि नाव नहीं चलेगी।
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पुल बनाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ क्यों हो गए?
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पुल बनाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गए थे। जब भी पुल बनता था, एक मौसम भी नहीं निकालता था। सरदी में बनता था, तो गरमी में टूट जाता था।
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