Political Science, asked by arunsahuji1516, 3 months ago

गठबंधन राजनीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव लिखिए ​

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Answered by itzPapaKaHelicopter
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  • भारतीय राजनीतिक प्रणाली में गठबंधन की राजनीतिक मंच पर लगभग एक ही पार्टी का वर्चस्व था. कांग्रेस पार्टी ने लगभग 1969 तक भारतीय राजनीतिक मंच पर अपना एकाधिकार स्थिर रखा. कई राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ इस व्यवस्था को “कांग्रेस व्यवस्था का नाम देती है.

  • कांग्रेस विरोधी पार्टियों ने यह अनुभव किया कि उनकी सत्ता बँट जाने के कारण ही कांग्रेस सत्तासीन है. 1967 के चौथे आम चुनाव (लोकसभा और विधानसभा) में कांग्रेस पहली बार नेहरु के बिना मतदाताओं का सामना कर रही थी. इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गये. यही वह समय रहा जब गठबंधन की परिघटना भारतीय राजनीति में प्रकट हुई.

यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत एक क्रमिक विकास की प्रक्रिया रही. इसकी शुरुआत देश के आजाद होने से लेकर विकास की सीढ़ियों तक चढ़ने के इतिहास में देखा जा सकता है. साथ ही धीरे-धेरे आम जनता व लोगों में जागरूकता से भारतीय राजनीतिक परिस्थतियों ने अपनी दशा और दिशा तय की. आज वर्तमान में न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया अधिक कुशल तरीके से संचालित की जाती है बल्कि प्रत्येक मतदाता अपने मत मूल्य, उससे जुड़ी उसका भविष्य और परिणामों से बेहतर रूप में अवगत दिखता है. कहीं न कहीं ये गठबंधन की राजनीति की ही देन है जिसमें कई मुद्दे व चेतनाओं को लोगों के समक्ष रखा. मोटे तौर पर गठबंधन की राजनीति ने भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण सकारत्मक सुधार लाये हैं जैसे –

  • लोकतंत्र को मजबूती : लोग लिंग, जाति, वर्ग और क्षेत्र सन्दर्भ में न्याय तथा लोकतंत्र के मुद्दे उठा रहे हैं.

  • सहमति की राजनीति : गठबंधन राजनीति ने सहमति की राजनीति को जन्म दिया. यह सहमति कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर देश के वर्तमान विकास के लिए लाभकारी रही. इन मुद्दों में आर्थिक नीतियों के प्रति समन्वय व तालमेल सबसे महत्त्वपूर्ण रहा. कई दल संयुक्त रूप से इस बात को मानते हैं कि नई आर्थिक नीतियाँ देश में पहले की अपेक्षा आज विकास को लाने का मुख्य कारण रही है.

  • सामाजिक खाई को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका : गठबंधन की राजनीति के माध्यम से जहाँ कई क्षेत्रीय पार्टियाँ अस्तित्व में आयीं, वहीं कई राष्ट्रीय पार्टियों ने कालांतर से दबी सामाजिक समस्याओं की जड़ें खोदी. बसपा ने दलित उत्थान, अन्य पार्टियों ने पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की बात छेड़ी. “आरक्षण” का मुद्दा जो इस पिछड़ेपन की समस्या के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, इसी समीकरण की देन है. कई पार्टियों ने महिला घरेलू हिंसा, बाल अधिकार, शिक्षा के अधिकार जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को भारतीय राजनीति का हिस्सा बनाया.

  • गठबंधन की राजनीति के फलस्वरूप महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर जनता का ध्यानाकर्षण : गठबंधन युग के पहले एक दल के ही मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दे पर हावी रहते थे. लेकिन गठबंधन के कारण अब कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे राष्ट्र के समक्ष न मात्र लाये जाते हैं बल्कि उन पर वाद-विवाद की भी पहल की जाती है. भ्रष्टाचार को लेकर, अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दे या कई परमाणु परियोजनाओं पर ऐसे विवाद होते रहे हैं.

  • देश के शासन में प्रांतीय दलों की बढ़ती भूमिका और उन्हें स्वीकृति : वर्तमान सन्दर्भ में अब प्रांतीय और राष्ट्रीय दलों में भेद कम हो चुका है तथा कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे इस कारण राष्ट्रीय मुद्दे बन कर उभरने लगे हैं.

  • गठबंधन की राजनीति ने भारत को अधिक संघात्मक बनाया : न सिर्फ क्षेत्रीय पार्टियों के उदय व उनकी प्रगति से ऐसे कार्य हुए हैं जिनसे भारतीय संघ मजबूत होता है बल्कि अब ऐसे विवाद कम ही देखे जाते हैं जहाँ केंद्र की सरकार राज्य की सरकारों पर अनुचित दबाव और गैर-संवैधानिक हस्तक्षेप करे. गठबंधन को साथ लेकर चलना, कार्यसिद्धि पर अधिक जोर कहीं-न-कहीं राजनीतिक दलों की सोच को परिपक्व बनाने का कार्य कर रहा है.

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Answered by akkhansa
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Explanation:

भारतीय राजनीतिक प्रणाली में गठबंधन की राजनीतिक मंच पर लगभग एक ही पार्टी का वर्चस्व था. कांग्रेस पार्टी ने लगभग 1969 तक भारतीय राजनीतिक मंच पर अपना एकाधिकार स्थिर रखा. कई राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ इस व्यवस्था को “कांग्रेस व्यवस्था का नाम देती है.

कांग्रेस विरोधी पार्टियों ने यह अनुभव किया कि उनकी सत्ता बँट जाने के कारण ही कांग्रेस सत्तासीन है. 1967 के चौथे आम चुनाव (लोकसभा और विधानसभा) में कांग्रेस पहली बार नेहरु के बिना मतदाताओं का सामना कर रही थी. इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गये. यही वह समय रहा जब गठबंधन की परिघटना भारतीय राजनीति में प्रकट हुई.

यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत एक क्रमिक विकास की प्रक्रिया रही. इसकी शुरुआत देश के आजाद होने से लेकर विकास की सीढ़ियों तक चढ़ने के इतिहास में देखा जा सकता है. साथ ही धीरे-धेरे आम जनता व लोगों में जागरूकता से भारतीय राजनीतिक परिस्थतियों ने अपनी दशा और दिशा तय की. आज वर्तमान में न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया अधिक कुशल तरीके से संचालित की जाती है बल्कि प्रत्येक मतदाता अपने मत मूल्य, उससे जुड़ी उसका भविष्य और परिणामों से बेहतर रूप में अवगत दिखता है. कहीं न कहीं ये गठबंधन की राजनीति की ही देन है जिसमें कई मुद्दे व चेतनाओं को लोगों के समक्ष रखा. मोटे तौर पर गठबंधन की राजनीति ने भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण सकारत्मक सुधार लाये हैं जैसे –

लोकतंत्र को मजबूती : लोग लिंग, जाति, वर्ग और क्षेत्र सन्दर्भ में न्याय तथा लोकतंत्र के मुद्दे उठा रहे हैं.

सहमति की राजनीति : गठबंधन राजनीति ने सहमति की राजनीति को जन्म दिया. यह सहमति कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर देश के वर्तमान विकास के लिए लाभकारी रही. इन मुद्दों में आर्थिक नीतियों के प्रति समन्वय व तालमेल सबसे महत्त्वपूर्ण रहा. कई दल संयुक्त रूप से इस बात को मानते हैं कि नई आर्थिक नीतियाँ देश में पहले की अपेक्षा आज विकास को लाने का मुख्य कारण रही है.

सामाजिक खाई को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका : गठबंधन की राजनीति के माध्यम से जहाँ कई क्षेत्रीय पार्टियाँ अस्तित्व में आयीं, वहीं कई राष्ट्रीय पार्टियों ने कालांतर से दबी सामाजिक समस्याओं की जड़ें खोदी. बसपा ने दलित उत्थान, अन्य पार्टियों ने पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की बात छेड़ी. “आरक्षण” का मुद्दा जो इस पिछड़ेपन की समस्या के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, इसी समीकरण की देन है. कई पार्टियों ने महिला घरेलू हिंसा, बाल अधिकार, शिक्षा के अधिकार जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को भारतीय राजनीति का हिस्सा बनाया.

गठबंधन की राजनीति के फलस्वरूप महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर जनता का ध्यानाकर्षण : गठबंधन युग के पहले एक दल के ही मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दे पर हावी रहते थे. लेकिन गठबंधन के कारण अब कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे राष्ट्र के समक्ष न मात्र लाये जाते हैं बल्कि उन पर वाद-विवाद की भी पहल की जाती है. भ्रष्टाचार को लेकर, अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दे या कई परमाणु परियोजनाओं पर ऐसे विवाद होते रहे हैं.

देश के शासन में प्रांतीय दलों की बढ़ती भूमिका और उन्हें स्वीकृति : वर्तमान सन्दर्भ में अब प्रांतीय और राष्ट्रीय दलों में भेद कम हो चुका है तथा कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे इस कारण राष्ट्रीय मुद्दे बन कर उभरने लगे हैं.

गठबंधन की राजनीति ने भारत को अधिक संघात्मक बनाया : न सिर्फ क्षेत्रीय पार्टियों के उदय व उनकी प्रगति से ऐसे कार्य हुए हैं जिनसे भारतीय संघ मजबूत होता है बल्कि अब ऐसे विवाद कम ही देखे जाते हैं जहाँ केंद्र की सरकार राज्य की सरकारों पर अनुचित दबाव और गैर-संवैधानिक हस्तक्षेप करे. गठबंधन को साथ लेकर चलना, कार्यसिद्धि पर अधिक जोर कहीं-न-कहीं राजनीतिक दलों की सोच को परिपक्व बनाने का कार्य कर रहा है.

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