Hindi, asked by barindersingh57832, 7 months ago

गठन से पूर्व हिमाचल प्रदेष्टा
थी​

Answers

Answered by diyag1632
0

Answer:

what u are writingI am not understanding

Answered by sdpandey1980
1

हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास उस समय में ले जाता है जब सिन्धु घाटी सभ्यता विकसित हुई। इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं। प्राचीनकाल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी में रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया। जब अंग्रेज यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।[1]

हिमाचल प्रदेश राज्य “देव भूमि” पुकारा जाता था।

इस धर्म में पूर्व ऐतिहासिक मानवों के अस्तित्व के गवाह हैं।

साधारणतया यह विश्वास किया जाता है कि इस प्रदेश का बड़े निवासियों ने वास्तव में समय-समय से मध्य एशिया और भारतीय मैदानों पर निवास किया।

हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करने वाली प्रथम प्रजाति मंगोल और आर्यों द्वारा अनुसरित प्रोटो-ऑस्ट्रेलियड थी।

इस प्रदेश में रहने वाले दस्युओं और निषादों और उनके शक्तिपूर्ण राजा शाम्बरा जो 99 किले रखता था, के बारे में ऋग्वेद में उल्लेख है।

इस इतिहास के पूर्वकाल से जनजातियों जैसे कोइलियों, हालियों, डोग्रीयों, दास, खासों, किन्नरों और किरतों ने इस पर निवास किया।

इस क्षेत्र पर आर्य-प्रभाव ऋग्वेद समय के पहले से दिनाकिंत है।

समय ने भी हिमाचल प्रदेश में छोटे जनपद की स्थापना और गणतंत्र को देखा।

उन्होने मौर्यों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध रखा ताकि वे एक लम्बे समय के लिये स्वतंत्र रह सकें।

उत्तरीय गंगेतिक मैदानों में गुप्तों की उन्नति के साथ उन्होने अपनी स्वतंत्रता खो दी।

गुप्तों के पतन के बाद, असंख्य छोटे राज्यों ने इस पहाड़ी राज्य पर शासन किया और इसके विभिन्न प्रदेश में अपनी शक्ति को स्थापित किया।

कश्मीर का राजा शंकर वर्मा ने लगभग 883 ईसा में हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमाया।

यह प्रदेश ने 1009 ईसा में महमूद गजनी के आक्रमण का साक्षी था।

मुगल शासकों ने इस भूमि की प्रशंसा के रूप में कला के असंख्य कार्यों को स्थापित किया।

1804 ईसा में महाराजा रणजीत सिंह, जिन्होने यहां राजपूत शक्ति को नष्ट कर दिया, के द्वारा आक्रमण तक, 1773 ईसा में संसार चंद के नेतृत्व के अधीन राजपूतों ने इस प्रदेश को अपनाया।

लगभग पूर्व 19 वीं शताब्दी ईसा में, ब्रिटिश ने अपने प्रभाव का प्रयोग किया और 1815-16 के गुरखा युद्ध के बाद शिमला के क्षेत्रों को मिला दिया।

ब्रिटिश ने गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और उत्तरी मैदानों की धूल से स्वयं को बचाने के लिये इस प्रदेश में कई पहाडी स्टेशनों को स्थापित किया।

शिमला भारत की गर्मी की राजधानी हो गया और आज भी, कई पुराने घर और इमारतें अंग्रेजी शान की कहानी सुनाते हैं।

शिमला हिल स्टेट्स की स्थापना

1945 ई. तक प्रदेश भर में प्रजा मंडलों का गठन हो चुका था। 1946 ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई।

स्वतंत्रता के बाद

जनवरी, 1948 ई. में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन सम्मेलन सोलन में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई। दूसरी तरफ प्रजा मंडल के नेताओं का शिमला में सम्मेलन हुआ, जिसमें यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब शक्ति प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथ सौंप दी जाए। शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में हिमालयन प्लांट गर्वनमेंट की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था। दो मार्च, 1948 ई. को शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए 8 मार्च 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 15 अप्रैल 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया था। उस समय प्रदेश भर को चार जिलों में बांटा गया और पंजाब हिल स्टेट्स को पटियाला और पूर्व पंजाब राज्य का नाम दिया गया। 1948 ई. में सोलन की नालागढ़ रियासत कों शामिल किया गया। अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,018 वर्ग कि॰मी॰ में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। उस समय हिमाचल प्रदेश में चार जिला महासू, सिरमौर, चंबा, मंडी शामिल किए गए थे। प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 27018 वर्ग किलोमीटर व जनसंया लगभग 9 लाख 35 हजार के करीब थी।

1950 ई. में प्रदेश का पुनर्गठन

1950 ई. में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उपतहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उपतहसील में मिला गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संसोग और भटाड़ जो देवघर खत में थे उन्हें जुब्बल तहसील में शामिल कर दिया गया।

पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया।

please mark me as the brainiest

and thank me

Similar questions