गदयांश
भाषा मनुष्य का विशेष अधिकार है। भाषा के कारण ही मनुष्य इतनी उन्नति कर सका है कि उसने
पंच-महाभूतों को अपने वश में कर लिया है। यह सच भाषा दवारा सहकारिता के बल पर ही हो
सका है। भाषा से हमारे ज्ञान, अनुभव और सामाजिकता की रक्षा होती है। किंतु भाषा का दुरुपयोग
उसे छिन भिन्न भी कर देता है। एक मधुर शब्द दो रूहों को मिला देता है और एक ही कट
शब्द दो मित्रों के मन में वैमनस्य उत्पन्न कर देता है। मधुर बच्चन माला - समाज को सुख-शाति में
वृद्धि करते हैं और कटु बदन सम्मान को सुख शांति को भंग कर देते हैं। अब प्रश्न यह है कि
मधुर भाषण किसे कहते हैं ? साधारणतया जो वस्तु मनोनुकूल होती है, जिससे चिल्ल द्रवित होता
१. वही मधुर कहलाती है। माधुर्य भाषा का भी गुण है। बच्चों का माधुर्य हृदय-द्वार खोलने की
जी है। वचनों का आकर्षण न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण और चुंबक के आकर्षण से भी बढ़कर है।
भी तो तुलसीदास ने कहा है
तुलसी मोटे बचन ते जग अपनो कार लेत।
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भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।
भाषा, मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे से प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है जैसे - बोली, जबान, वाणी विशेष।
सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है।
इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथवा बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है।