गधे स्वतंत्र होने के बाद भी नहीं क्यों नहीं भाग रहे थे?
do bailon ki katha
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मनीष शर्मा
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»एक बार एक पंडित दक्षिणा में मिले बकरे को कंधे पर लादकर घर लौट रहा था। जंगल से गुजरते समय तीन ठगों की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने उस मोटे-ताजे बकरे को पंडित से हथियाने की योजना बनाई।
»एक ठग पंडित के पास पहुँचकर बोला- अरे पंडितजी, इस कुत्ते को कंधे पर कहाँ लिए जा रहे हो। पंडित गुस्से में बोला- अरे मूर्ख, बकरे को कुत्ता कहता है। अंधा है क्या। ठग- नाराज न हों महाराज। मुझे तो जैसा दिखा, वैसा कहा। यह कहकर वह ठग चला गया। इधर पंडित ने ध्यान से बकरे को देखा और खुद को विश्वास दिलाता हुआ बोला- नहीं-नहीं, यह तो बकरा ही है और आगे बढ़ गया।
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