India Languages, asked by anishsuman7921, 9 months ago

gautam buddha ke bare mein bataye uska pura history marathi mein

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Answered by Sachinarjun
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Explanation:

गौतम गोत्र में जन्मे बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था । उनका जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ था। दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था। बुद्ध का जन्म दिन व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है [1] उनकी माता का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो”। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा । [2] सुधोधना ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया, और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एकसी दोहरी भविष्यवाणी की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा. [3]

बाल्यकाल

शाक्यों के राजा शुद्धोधन‘ सिद्धार्थ के पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की मातामायादेवीजो कोली वश की थी] का निधन उनके जन्म के कुछ समय बाद हो गया था। कहा जाता है कि फिर एक ऋषि ने शुद्धोधन से कहा कि, वे या तो एक महान राजा बनेंगे, या एक महान साधु । इसभविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ को दुःख से दूर रखने की कोशिश की। फिर भी, २९ वर्ष की उम्र में, उनकी दृष्टि चार दृश्यों पर पड़ी (संस्कृत – चतुर्निमित्त, पालि– चत्तारि निमित्तानि) – एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, एक रोगी, एक मुरझाती हुई पर्थिव शरिर्, और एक साधु। इन चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ समझ गये कि सब का जन्म होता है, सब को बुढ़ापा आता है, सब को बीमारी होती है, और एक दिन, सब की मृत्यु होती है। उन्होने अपना धनवान जीवन, अपनी पत्नी, अपना पुत्र एवं राजपाठ सब को छोड़कर एक साधु का जीवन अपना लिया ताकि वे जन्म, बुढ़ापे, दर्द, बीमारी, और मृतयु के बारे में कोई उत्तर खोज पाएं।

सत्य की खोज

सिद्धार्थ ने दो ब्राह्मणों के साथ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किये। समुचित ध्यान लगा पाने के बाद भी उन्हें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। फ़िर उन्होने तपस्या की परंतु उन्हे अपने प्रश्नों के उत्तर फ़िर भी नहीं मिले। फ़िर उन्होने कुछ साथी इकठ्ठे किये और चल दिये अधिक कठोर तपस्या करने। ऐसे करते करते छः वर्ष बाद, भूख के कारण मरने के करीब-करीब से गुज़रकर, बिना अपने प्रश्नों के उत्तर पाएं, वे फ़िर कुछ और करने के बारे में सोचने लगे। इस समय, उन्हे अपने बचपन का एक पल याद आया जब उनके पिता खेत तैयार करना शुरू कर रहे थे। उस समय वे एक आनंद भरे ध्यान में पड़ गये थे और उन्हे ऐसा महसूस हुआ कि समय स्थित हो गया है।

ज्ञान प्राप्ति

कठोर तपस्या छोड़कर उन्होने आर्य अष्टांग मार्ग ढूंढ निकाला, जो मध्यम मार्ग भी कहलाता जाता है क्योंकि यह मार्ग दोनो तपस्या और असंयम की पाराकाष्टाओं के बीच में है। अपने बदन में कुछ शक्ति डालने के लिये, उन्होने एक बरह्मनि से कुछ खीर ली थी। वे एक पीपल के पेड़ (जो अब बोधि वृक्षकहलाता है) के नीचे बैठ गये प्रतिज्ञा करके कि वे सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं। वे सारी रात बैठे और सुबह उन्हे पूरा ज्ञान प्राप्त हो गया। उनकी अविजया नष्ट हो गई और उन्हे निर्वन यानि बोधि प्राप्त हुई और वे ३५ की उम्र तक बुद्ध बन गये। उनका पहला धर्मोपदेश वाराणसी के पास सारनाथ मे था जो उन्होने अपने पहले मित्रो को दिया। उन्होने भी थोडे दिनो मे ही बोधि प्राप्त कर ली। फिर गौतम बुद्ध ने उन्हे प्रचार करने के लिये भेज दिया।

हिन्दू धर्म में बुद्ध हिन्दू धर्म ने बाद में बुद्ध को विष्णु का एक अवतार माना है। लेकिन इसे इस तरीके से पेश किया गया है जिसे ज़्यादातर बौद्ध अस्वीकार्य और बेहद अप्रिय मानते हैं। कुछ पुराणों में ऐसा कहा गया है कि भगवान विष्णु ने बुद्ध अवतार इसलिये लिया था जिससे कि वो “झूठे उपदेश” फैलाकर “असुरों” को सच्चे वैदिक धर्म से दूर कर सकें, जिससे देवता उनपर जीत हासिल कर सकें। इसका मतलब है कि बुद्ध तो “देवता” हैं, लेकिन उनके उपदेश झूठे और ढोंग हैं। ये बौद्धों के विश्वास से एकदम उल्टा है: बौद्ध लोग गौतम बुद्ध को कोई अवतार या देवता नहीं मानते, लेकिन उनके उपदेशों को सत्य मानते हैं। कुछ हिन्दू लेखकों (जैसे जयदेव) ने बाद में यह भी कहा है कि बुद्ध विष्णु के अवतार तो हैं, लेकिन विष्णु ने ये अवतार झूठ का प्रचार करने के लिये नहीं बल्कि अन्धाधुन्ध कर्मकाण्ड और वैदिक पशुबलि रोकने के लिये किया था। गौतम बुद्ध चाहे विष्णु जी के अवतार हों या नहीं लेकिन वे पूजने के योग्य तो हैं ही|

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