गय
ननंकित पद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
माधव! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहिर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटे ||1||
घृतपूरन कराह अंतरगत ससि-प्रतिबिंब दिखावै।
ईंधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै ।।2।।
तरू-कोटर महँ बस बिहंग तरू काटे मरै न जैसे।
साधन करिय बिचार-हीन मन सुद्ध होइ नहिं तैसे ।।3।।
अंतर मलिन बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।
मरइ न उरग अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे ||4||
तुलसिदास हरि-गुरू-करूना बिनु बिमल बिबेक न होई
बिनु बिबेक संसार-घोर-निधि पार न पावै कोई ।।5।।
सलन नसैदों।
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तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह रोग का अंत मत कर (अर्थात् विरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक न पहुँचा) सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान
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