गयांधीजी िे िक्षिण अफ्रीकय मेंप्रर्यसी भयरती्ों को मयिर्-मयत्र की समयितय और स्र्तांत्रतय के प्रनत
जयगरुक बियिे कय प्र्त्ि कक्य। इसी के सयथ उन्होंिे भयरती्ों के िैनतक पि को जगयिे और सुसांस्कृत बियिे
के प्र्त्ि भी ककए। गयांधी जी िे ऐसय क््ों कक्य? इसलिए कक र्े मयिर्-मयिर् के बीच कयिे-गोरे, ्य ऊँ च-िीच कय
भेि ही लमटयिय प्यवप्त िहीां समझते थे, उिके बीच एक मयिर्ी् स्र्भयवर्क स्िेह और हयदिवक सह्ोग कय सांबांध
भी स्थयवपत करिय चयहते थे।
इसके बयि जब र्े भयरत आए, तब उन्होंिे इस प्र्ोग को एक बडय और व््यपक रुप दि्य वर्िेशी
शयसि के अन््य्-अिीनत के वर्रोध मेंउन्होंिेजजतिय बडय सयमूदहक प्रनतरोध सांगदित कक्य, उसकी लमसयि सांसयर
के इनतहयस मेंअन््त्र िहीां लमिती। पर इसमेंउन्होंिेसबसेबडय ध््यि इस बयत कय रिय कक इस प्रनतरोध मेंकहीां
भी कटुतय, प्रनतशोध की भयर्िय अथर्य कोई भी ऐसी अिैनतक बयत ि हो जजसके लिए वर्श्र्-मांच पर भयरत कय
मयथय िीचय हो। ऐसय गयांधी जी िेइसलिए कक्य क््ोंकक र्ेमयितेथेकक बधां ुत्र्, मैत्री, सदभयर्िय, स्िेह-सौहयिव आदि
गुण मयिर्तय रूप टहिी के ऐसे पष्ुप हैंजो सर्विय सुगांधधत रहते हैं।
(i). अफ्रीकय मेंप्रर्यसी भयरती्ों के पीडडत होिेकय क््य कयरण थय?
क) निधवितय धनिकतय पर आधयररत भेिभयर्
ि) रांग-भेि और सयमयजजक स्तर से सांबांधधत भेिभयर्
ग) धयलमवक लभन्तय पर आधित भेिभयर्
घ) वर्िेशी होिे से उत्पन्ि मि-मुटयर्
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