गयांधीजी िे िक्षिण अफ्रीकय मेंप्रर्यसी भयरती्ों को मयिर्-मयत्र की समयितय और स्र्तांत्रतय के प्रनत
जयगरुक बियिे कय प्र्त्ि कक्य। इसी के सयथ उन्होंिे भयरती्ों के िैनतक पि को जगयिे और सुसांस्कृत बियिे
के प्र्त्ि भी ककए। गयांधी जी िे ऐसय क््ों कक्य? इसलिए कक र्े मयिर्-मयिर् के बीच कयिे-गोरे, ्य ऊँ च-िीच कय
भेि ही लमटयिय प्यवप्त िहीां समझते थे, उिके बीच एक मयिर्ी् स्र्भयवर्क स्
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भाई मुझे एक सवाल है
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इस लेख काका करना क्या है वो तो बताओ
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3 days ago