geet ageet par vaad vivad
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गीत-अगीत कौन सुंदर है’- दिनकर की इस छोटी-सी कविता में गहरा प्रश्न छिपा है। अभिव्यक्ित दो प्रकार की होती है- मुखर और मौन, इनमें कौन-सी अधिक प्रभावशाली माननी चाहिए? संगीत में बहुत क्षमता होती है। छोटे से बच्चे की खीझ, रोना सब गीत की लय से काबू में आ जाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि धीमे, मधुर संगीत से हमारा रक्तचाप संतुलित रहता है, दर्द, चिन्ता और तनाव से मुक्ित मिलती है। प्रकृति के कण-कण में संगीत और लय भरी हुई है। कल-कल बहती नदी हो या पत्तों में से सरसराती गुजरती हवा- सभी कुछ गाते हुए से लगते हैं। पक्षियों का कलरव अपने भावों को व्यक्त करता है। कोयल की कूक विरहिणी को आकुल करती है तो कौए की काँव-काँव प्रिय के आने का आश्वासन देती है। सामाजिक, सांस्कृतिक पर्व और त्योहार गीतों के बिना फीके लगते हैं। यही संगीत जब उस परमशक्ित को समर्पित होता है, तो आत्मा की आवाज बन कर परमात्मा को भी भक्त के सामने विवश कर देता है। शायद इसीलिए प्रत्येक धर्म प्रभु तक पहुंचने के लिए भजनों का सहारा लेता है। अगीत गीत का विपरीत शब्द है। गीत मुखर अभिव्यक्ित है तो अगीत मौन। गराती हुई बिजली का दु:ख क्या मृत्यु की भयावहता से ग्रस्त फूल के दर्द से ज्यादा है, जो मौन भाव से अंत की प्रतीक्षा करता है? बसंत के आने की सूचना देने वाले तोते का गीत क्या उस तोती की खुशी से बढ़कर है, जो अंडे को सेने के कारण घोंसले से बाहर आकर उसके साथ तान नहीं मिलाती? क्या प्रेम जताने के लिए ऊंचे स्वर में गीत गाना जरूरी है? कई बार मुखर अभिव्यक्ित से मौन अभिव्यक्ित ज्यादा भावपूर्ण और समर्थ होती है। धर्म में मौन साधना का गहरा महत्व माना गया है। अब मूल प्रश्न पर वापिस आने से जवाब यही होगा कि अभिव्यक्ित के दोनों रूप पूर्णत: भिन्न होते हुए भी सुंदर हैं।
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