Hindi, asked by gaonkarakansha, 4 months ago

gehu banan gulab saransh

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Answered by Anonymous
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गेहूँ बनाम गुलाब' श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित एक ललित निबन्ध है। इस निबन्ध के अन्तर्गत लेखक ने गेहूँ को भौतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक प्रगति का प्रतीक माना है और गुलाब को मानसिक अर्थात् सांस्कृतिक प्रगति का प्रतीक माना है। इन दोनों का सन्तुलन ही मानव जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकता है।

Answered by jyotisrivastava8201
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पाठ-सारांश :

गेहूँ बनाम गुलाब’ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित एक ललित निबन्ध है। इस निबन्ध के अन्तर्गत लेखक ने गेहूँ को भौतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक प्रगति का प्रतीक माना है और गुलाब को मानसिक अर्थात् सांस्कृतिक प्रगति का प्रतीक माना है। इन दोनों का सन्तुलन ही मानव जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकता है।

प्राचीनकाल में गेहूँ और गुलाब की स्थिति – मनुष्य अपने जन्म के साथ ही भूख साथ लेकर आया। अपनी इस भूख-प्यास को मिटाने के लिए उसने प्रकृति के हर तत्व से भोजन जुटाने का प्रयास किया। जन्म से ही अपने साथ भूख लाने वाला यही मनुष्य आदिकाल से ही सौन्दर्य-प्रेम भी रहा है। अपनी क्षुधा को शान्त करने के लिए उसने जहाँ एक ओर कठिन परिश्रम किया, वहीं अपनी कोमल भावनाओं को भी नष्ट नहीं होने दिया। उसने अपनी इन कोमल भावनाओं को भी नष्ट नहीं होने दिया। उसने अपनी इन कोमल भावनाओं का कुशलतापूर्वक पोषण किया।

अपनी भूख मिटाने के लिए जहाँ उसने पशुओं को मारकर उनका माँस खाया, वहीं अपने मनोरंजन और अपनी मानसिक शांति के लिए उन्हीं पशुओं की खाल से ढोल भी बनाया। बाँस से लाठी बनाने के साथ-साथ उसने बाँसुरी भी बनाई । यदि समग्र रूप में यह कहें कि प्राचीनकाल से ही गेहूँ अर्थात् भौतिक शांति के साथ-साथ गुलाब अर्थात् मानसिक प्रगति को भी महत्व दिया जाता रहा है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गेहूँ और गुलाब की वर्तमान स्थिति- मनुष्य के शरीर में पेट का स्थान नीचे और मस्तिष्क का सबसे ऊपर होता है। वह गेहूँ खाता है और गुलाब सँघता है। एक से उसका शरीर तृप्त होता है और दूसरे से उसका मन तृप्त होता है। मनुष्य ने जब से दो पैरों पर चलना सीखा उसके मन ने गेहूँ अर्थात् अपनी भूख पर काबू करने के प्रयास शुरू कर दिए। वह आदिकाल से ही उपवास, व्रत एवं तपस्या करके गेहूँ पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा कर रहा है; गेहूँ और गुलाब के सन्तुलन में ही सुख है, शक्ति है; परन्तु आज यह सन्तुलन टूट रहा है। वर्तमान समय में गेहूँ घोर परिश्रम का प्रतीक बन गया है और गुलाब घोर विलासिता का।

सन्तुलन की आवश्यकता – मनुष्य ने जब से अपनी क्षुधा को शांत करने के लिए परिश्रम करना आरंभ किया, उसने परिश्रम के साथ संगीत को भी महत्त्व दिया। आदिकाल में मनुष्य ने गेहूँ और गुलाब अर्थात् शरीर और मन में समन्वय स्थापित किया था। यही कारण था कि वह बहुत सुखी था; परन्तु वर्तमान युग के भौतिकतावादी समय में यह सन्तुलन टूट गया है। इसलिए सर्वत्र अशान्ति और हाहाकार मचा हुआ है। सभी जगह युद्ध और संकट के बादल मँडरा रहे हैं। यदि इसी प्रकार गुलाब और गेहूँ का यह संतुलन बिगड़ता गया तो सर्वनाश निश्चित है।

भौतिक समृद्धि से सुख की प्राप्ति कल्पना मात्र है – भौतिक सुख-सुविधाओं से स्थायी सुख एवं शांति की प्राप्ति असंभव है; यह केवल क्षणिक अथवा सुख का दिखावा मात्र अवश्य हो सकती है; किन्तु इससे मानव की स्थायी प्रगति नहीं हो सकती है। इस वास्तविकता को भुलाकर मानव इन भौतिक सुख-साधनों के पीछे दौड़ रहा है, परिणामस्वरूप मानवता के स्थान पर दानवता बढ़ रही है। भौतिक समृद्धि अनिष्ट का कारण नहीं है किन्तु मनुष्य की अधीरता और इन साधनों को प्राप्त करने की लालसा ने उसे भौतिकता में व्याप्त राक्षसी प्रवृत्तियों में संलिप्त कर दिया है। भौतिकता में व्याप्त ये राक्षसी प्रवृत्तियाँ सबसे अधिक अहितकर हैं। इसलिए आज यह आवश्यक हो गया है कि ऐसे उपाय किए जाएँ, जिससे व्यक्ति को मानसिक संस्कार हो; अर्थात् गेहूँ पर गुलाब की, शरीर पर मन की और भौतिकता पर सांस्कृतिकता की विजय हो।

नए युग का आरंभ – गेहूँ की दुनिया अर्थात् भौतिकता की स्थूल दुनिया नष्ट हो रही है। अब गुलाब की दुनिया अर्थात् सांस्कृतिक और भावात्मक दुनिया का आरंभ हो रहा है। इस युग में मानवता पर पड़ा हुआ गेहूँ का मोटा आवरण हट जाएगा और मानव-जीवन संगीतमय होकर संगीत, नृत्य एवं आनंद से मचल उठेगा । यह युग संस्कृति का युग होगा। यह रंगों, सुगन्धों और सौन्दर्य का संसार होगा।

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