Social Sciences, asked by Nikkibhati34, 10 months ago

Germany ke ekikaran ki prakriya ko spasht kijiye
class 10th ​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

यूरोप के स्वतंत्र राज्यों (प्रशा, बवेरिआ, सैक्सोनी आदि) को आपस में मिलाकर १८७१ में एक राष्ट्र-राज्य व जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया गया। इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का नाम जर्मनी का एकीकरण है। इसके पहले यह भूभाग (जर्मनी) ३९ राज्यों में बंटा हुआ था। इसमें से ऑस्ट्रियाई साम्राज्य तथा प्रशा राजतंत्र अपने आर्थिक तथा राजनीतिक महत्व के लिये प्रसिद्ध थे।.

परिचय संपादित करें

फ्रांस की क्रांति द्वारा उत्पन्न नवीन विचारों से जर्मनी प्रभावित हुआ था। नेपोलियन ने अपनी विजयों द्वारा विभिन्न जर्मन-राज्यों को राईन-संघ के अंतर्गत संगठित किया, जिससे जर्मन-राज्यों को एक साथ रहने का एहसास हुआ। इससे जर्मनी में एकता की भावना का प्रसार हुआ। यही कारण था कि जर्मन-राज्यों ने वियना कांग्रेस के समक्ष उन्हें एक सूत्र में संगठित करने की पेशकश की, पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

वियना कांग्रेस द्वारा जर्मन-राज्यों की जो नवीन व्यवस्था की गयी, उसके अनुसार उन्हें शिथिल संघ के रूप में संगठित किया गया और उसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया को बनाया गया। राजवंश के हितों को ध्यान में रखते हुए विविध जर्मन राज्यों का पुनरूद्धार किया गया। इन राज्यों के लिए एक संघीय सभा का गठन किया गया, जिसका अधिवेशन फ्रेंकफर्ट में होता था। इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित न होकर विभिन्न राज्यों के राजाओं द्वारा मनोनीत किए जाते थे। ये शासक नवीन विचारों के विरोधी थे और राष्ट्रीय एकता की बात को नापसंद करते थे किन्तु जर्मन राज्यों की जनता में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना विद्यमान थी। यह नवीन व्यवस्था इस प्रकार थी कि वहाँ आस्ट्रिया का वर्चस्व विद्यमान था। इस जर्मन क्षेत्र में लगभग 39 राज्य थे जिनका एक संघ बनाया गया था।

जर्मनी के विभिन्न राज्यों में चुंगीकर के अलग-अलग नियम थे, जिनसे वहां के व्यापारिक विकास में बड़ी अड़चने आती थीं। इस बाधा को दूर करने के लिए जर्मन राज्यों ने मिलकर चुंगी संघ का निर्माण किया। यह एक प्रकार का व्यापारिक संघ था, जिसका अधिवेशन प्रतिवर्ष होता था। इस संघ का निर्णय सर्वसम्मत होता था। अब सारे जर्मन राज्यों में एक ही प्रकार का सीमा-शुल्क लागू कर दिया गया। इस व्यवस्था से जर्मनी के व्यापार का विकास हुआ, साथ ही इसने वहाँ एकता की भावना का सूत्रपात भी किया। इस प्रकार इस आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकता की भावना को गति प्राप्त हुई। वास्तव में, जर्मन राज्यों के एकीकरण की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम था।

फ्रांस की क्रान्तियों का प्रभाव संपादित करें

जर्मनी की जनता में राष्ट्रीय भावना कार्य कर रही थी। देश के अंदर अनेक गुप्त समितियाँ निर्मित हुई थीं। ये समितियाँ नवीन विचारों का प्रसार कर रही थीं। यही कारण था कि 1830 ई . और 1848 ई. में फ्रांस में होने वाली क्रांतियों का प्रभाव वहाँ भी पड़ा और वहाँ की जनता ने भी विद्रोह कर दिया। यद्यपि ये क्रांतियाँ सफल न हुई तथापि इससे देश की जनता में राजनीतिक चेतना का आविर्भाव हुआ।

1860 ई . में जब इटली की राष्ट्रीय एकता का कार्य काफी कुछ पूरा हो गया तब जर्मन जनता में भी आशा का संचार हुआ और वह भी एकीकरण की दिशा में गतिशील हुई। इटली के एकीकरण का कार्य पीडमाण्ट के राजा के नेतृत्व में हो रहा था। इसी तरह जर्मन देशभक्तों ने प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण के कार्य को संपन्न करने का निश्चय किया। इस समय प्रशा का शासक विलियम प्रथम तथा चांसलर बिस्मार्क था किन्तु इन जर्मन देशभक्तों के समक्ष दो प्रमुख समस्यायें थीं-

1. आस्ट्रिया के प्रभुत्व से छुटकारा पाना,

2. जर्मन-राज्यों को प्रशा के नेतृत्व में संगठित करना।

बिस्मार्क का उदय संपादित करें

ऑटो एडवर्ड लियोपोल्ड बिस्मार्क का जन्म 1815 ई. में ब्रेडनबर्ग के एक कुलीन परिवार में हुआ था। बिस्मार्क की शिक्षा बर्लिन में हुई थी। 1847 ई. में ही वह प्रशा की प्रतिनिधि-सभा का सदस्य चुना गया। वह जर्मन राज्यों की संसद में प्रशा का प्रतिनिधित्व करता था। वह नवीन विचारों का प्रबल विरोधी था। 1859 ई. में वह रूस में जर्मनी के राजदूत के रूप में नियुक्त हुआ। 1862 ई. में वह पेरिस का राजदूत बनाकर भेजा गया। इन पदों पर रहकर वह अनेक लोगों के संपर्क में आया। उसे यूरोप की राजनीतिक स्थिति को भी समझने का अवसर मिला। 1862 ई. में प्रशा के शासक विलियम प्रथम ने उसे देश का चाँसलर (प्रधान मंत्री) नियुक्त किया।

बिस्मार्क ‘रक्त और लोहे की नीति' का समर्थक था। उसकी रुचि लोकतंत्र ओर संसदीय पद्धति में नहीं थी। वह सेना और राजनीति के कार्य में विशेष रुचि रखता था। इन्हीं पर आश्रित हो, वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता था। वह प्रशा को सैनिक दृष्टि से मजबूत कर यूरोप की राजनीति में उसके वर्चस्व को कायम करना चाहता था। वह आस्ट्रिया को जर्मन संघ से निकाल बाहर कर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। वह सभाओं और भाषणों में विश्वास नहीं करता था। वह सेना और शस्त्र द्वारा देश की समस्याओं का सुलझाना चाहता था। वह अवैधानिक कार्य करने से भी नहीं हिचकता था।

प्रशा की सैनिक शक्ति में वृद्धि कर तथा कूटनीति का सहारा लेकर उसने जर्मन राज्यों के एकीकरण के कार्य को पूरा किया। इस कार्य को पूरा करने के लिए उसने तीन प्रमुख युद्ध लड़े। इन सभी युद्धों में सफल होकर उसने जर्मन-राज्यों के एकीकरण के कार्य को पूरा किया। इससे यूरोपीय इतिहास का स्वरूप ही बदल गया।

डेनमार्क से युद्ध (1864 ई.) संपादित करें

सर्वप्रथम बिस्मार्क ने अपनी शक्ति का प्रहार डेनमार्क के राज्य पर किया। जर्मनी और डेनमार्क के बीच दो प्रदेश विद्यमान थे, जिनके नाम श्लेसविग और हॉलस्टीन थे। ये दोनों प्रदेश सदियों से डेनमार्क के अधिकार में थे, पर इसके भाग नहीं थे। हॉलस्टीन की जनता जर्मन जाति की थी, जबकि श्लेसविग में आधे जर्मन और आधे डेन थे।

Answered by Cosmique
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●जर्मनी की एकीकरण प्रकिया को निम्नलिखित तरीके से समझा जा सकता है:●

•1) एकीकरण से पहले जर्मनी प्रशा, बवेरिया, सैक्सनी आदि में विभाजित था|

•2) आस्ट्रिया के विरोध के कारण फ्रैंकफर्ट संसद पहले ही असफल हो चुकी थी|

•3) अब एकीकरण लोकतंत्र के सहारे नहीं होकर प्रशा के चांसलर बिस्मार्क द्वारा सैन्य शक्ति और कूटनीति के सहारे होना था|

•4) 1864 के प्रशा- डेनमार्क युद्ध, 1866 के प्रशा- आस्ट्रिया युद्ध व 1870 के प्रशा- फ्रांस युद्ध में प्रशा ने विजय प्राप्त की|

•5) इन युद्धों से प्रशा को कई राज्य मिले तथा बाकी बचे राज्य प्रभावित होकर शामिल हो गए|

•6) इस प्रकार 1871 में काइज़र विलियम प्रथम एकीकृत जर्मनी का सम्राट घोषित हुआ|

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