Hindi, asked by kumaridipeeka95, 8 months ago

(घ) आशय स्पष्ट कीजिए।
(i) भोजन का पूरा स्वाद और पूरी तृप्ति पाने के लिए थोड़ी-सी क्षुधा सहन करना अनिवार्य ही
नहीं, आवश्यक भी है।
(ii) कमज़ोरी पर ऊपर से आक्रमण करना विजय की पहली सीढ़ी है।​

Answers

Answered by ajitjha9627
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Answer:

किसी चीज को पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है पहले वाक्य का यही आशय स्पष्ट होता है और हार कर भी जीत ना हमारे विजय की पहली सीढ़ी होती है

Explanation:

किसी चीज को पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है पहले वाक्य का यही आज से स्पष्ट है कमजोर पर आक्रमण करने से विजय हमारी ही होती है

Answered by itzOPgamer
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(i) भोजन का पूरा स्वाद और पूरी तृप्ति पाने के लिए थोड़ी-सी क्षुधा सहन करना अनिवार्य ही  नहीं, आवश्यक भी है।

आशय:–  इस कथन का आशय यह है कि हमेशा भोगों का भोग करते रहने से ही तृप्ति नहीं मिलती। किसी भी सुख का सच्चा आनंद प्राप्त करने के लिए त्याग करना आवश्यक है। त्याग करने के बाद और थोड़ा कष्ट सहने के बाद मिलने वाले सुख का आनंद ही अलग होता है। यदि हर समय हमारा पेट भरा रहेगा तो पहले तो हमें भूख का एहसास नहीं होगा। यदि भूख लगेगी भी तो खुलकर भूख नहीं लगेगी इससे खाने का आनंद नहीं आएगा। खाने का वजन का सच्चा आनंद लेने के लिए आवश्यक है कि खुलकर भूख लगे और खुलकर भूख तभी लगेगी जब हमारा पेट पूरी तरह खाली होगा अर्थात हमने पहले जो खाया है। सब पच चुका हो और बीच में एक अंतराल रखकर हम अपनी भूख को उच्चतम अवस्था तक जाग्रत कर चुके हों।

यही नियम-सिद्धांत जीवन के अन्य सिद्धांतों पर भी लागू होता है। जीवन में किसी भी तरह का सुख पाने के लिए कष्ट सहना और त्याग करना आवश्यक है। त्याग करने के पश्चात मिलने वाले सुख का आनंद अलग होता है।

(ii) कमजोरी पर ऊपर से आक्रमण करना विजय की पहली सीढ़ी है।

आशय:–  ​इस कथन का आशय है कि अपनी कमजोरी अर्थात अपनी बुराइयों तथा अपनी कमियों पर अंकुश लगाकर उन्हें नियंत्रित करना, अपने मन पर नियंत्रण स्थापित करना, अपनी इच्छाओं को लगाम देने से ही सफलता प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता हैष जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं का गुलाम है, जिसका मन विषय-वासनाओं में भटका है, जिसका मन अपने नियंत्रण में नहीं है, जो बुराइयों-दुर्गुणों से ग्रस्त है वह सफलता पानी का अधिकारी नहीं उसके लिए सफलता एक दुष्कर कार्य है। अपने दुर्गुणों पर विजय पारा किसी कार्य में विजय पाने की पहली सीढ़ी है कि हम अपनी कमियों को दूर करें उन्हें पहचाने और उनको दूर करें। जब हम अपने दुर्गुणों और कमियों पर विजय पा लेते हैं तो वहीं से हम सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ लेते हैं।

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