(घ)
अब के सावन' गीत किसने गाया है?
मोर थी?
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Explanation:
विभिन्न ॠतुओं को आधार बनाकर गीत लिखने की परम्परा अति प्राचीन है। सावन ॠतु को आधार बनाकर असंख्य गीत लिखे गये हैं। रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी ऐसे गीतों का दर्शन होते हैं। इसी प्रकार के गीत हैं--
गीत
सं०--(i )
ऊँची अटरिया झझन किवरिया,
कोरी आवे झरोकन व्यार जी।
विजनी डुलाउत सास नै देखो,
कोई सास को मुडवा पिराने जी।
लावौ ना अम्मा मेरी कसी खुरपिया,
कोई जंगल बूटी लै आवै जी।
कोई लावै ना रनिया करेजी जी।
लावै ना जम्मा मेरी पाँचौ से कपड़े,
कोई लावौ ना पाँचौ हतियार जी।
कोई रनिया करेजी लै आवे जी,
लेउ ना अम्मा मेरी रनिया करेजी कोई घिस-घिस मुडवा लगावौ
कोह कौ -- बेटा मेरे छलवल करत हौ,
कोई लाए न हिरन करेजी जी।
तुमरे पीहर में रनिया ब्याह उठो है,
कोई तुम्हे पीहर पहुचावें जी।
न मेरे भैया न भतीजो,
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