Hindi, asked by ranjeetcingh13092000, 1 month ago

(घ) अकबरी लोटा – अन्नपूर्णानंद वर्मा​

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Answered by sonalarun1983
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Explanation:

लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाजार में मकान था। नीचे की दुकानों से 100 रुपया मासिक के करीब किराया उतर आता था। कच्‍चे-बच्‍चे अभी थे नहीं, सिर्फ दो प्राणी का खर्च था। अच्‍छा खाते थे, अच्‍छा पहनते थे। पर ढाई सौ रुपए तो एक साथ कभी आंख सेंकने के लिए भी न मिलते थे।

इसलिए जब उनकी पत्‍नी ने एक दिन यकायक ढाई सौ रुपए की मांग पेश की तब उनका जी एक बार जोर से सनसनाया और फिर बैठ गया। जान पड़ा कि कोई बुल्‍ला है जो बिलाने जा रहा है। उनकी यह दशा देखकर उनकी पत्‍नी ने कहा, 'डरिए मत, आप देने में असमर्थ हों तो मैं अपने भाई से मांग लूं।'

लाला झाऊलाल इस मीठी मार से तिलमिला उठे। उन्‍होंने किंचित रोष के साथ कहा, 'अजी हटो! ढाई सौ रुपए के लिए भाई से भीख मांगोगी? मुझसे ले लेना।'

'लेकिन मुझे इसी जिंदगी में चाहिए।'

'अजी इसी सप्‍ताह में ले लेना।'

'सप्‍ताह से आपका तात्‍पर्य सात दिन से है या सात वर्ष से?'

लाल झाऊलाल ने रोब के साथ खड़े होते हुए कहा, 'आज से सातवें दिन मुझसे ढाई सौ रुपए ले लेना।'

'मर्द की एक बात!'

'हां, जी हां! मर्द की एक बात!'

लेकिन जब चार दिन ज्यों-त्‍यों में यों ही बीत गए और रुपयों का कोई प्रबंध न हो सका तब उन्‍हें चिंता होने लगी। प्रश्‍न अपनी प्रतिष्‍ठा का था, अपने ही घर में अपनी साख का था। देने का पक्‍का वादा करके अब अगर न दे सके तो अपने मन में वह क्‍या सोचेगी? उसकी नजरों में उनका क्‍या मूल्‍य रह जाएगा? अपनी वाहवाही की सैकड़ों गाथाएं उसे सुना चुके थे। अब जो एक काम पड़ा तो चारों खाने चित हो रहे? यह पहली ही बार उसने मुंह खोलकर कुछ रुपयों का सवाल किया था। इस समय अगर वे दुम दबाकर निकल भागते हैं तो फिर उसे क्‍या मुंह दिखाएंगे? मर्द की एक बात- यह उसका फिकरा उनके कानों में गूंज-गूंजकर फिर गूंज उठता था।

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