घ) अधरान धरी अधरा न धरौंगी' का क्या आशय है
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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
यहाँ पर गोपियों की कृष्ण का प्रेम पाने की इच्छा और कोशिश का वर्णन किया गया है। कृष्ण गोपियों को इतने रास आते हैं कि उनके लिए वे सारे स्वांग करने को तैयार हैं। वे मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को तैयार हैं। लेकिन एक शर्त है और वह यह है कि मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को वे अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं हैं।