(घ) “बिरादरी बाहर' कहानी का सारांश ।
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Answer:
बेंत की मूठ से कुंडी को तीन बार खटखटाया, तब जाकर भीतर बत्ती
जली और चंदा ने आकर दरवाजा खोला। भिंचे गले से पारस बाबू ने डांटा, ''सब-के-सब बहरे हो गए हैं? सुनाई ही नहीं देता?'' डर था कहीं आवाज ऊपर
न पहुंच जाए।
Explanation:
Please mark me as a BRAINLIEST.......
बिरादरी बाहर कहानी का सारांश :
‘बिरादरी बाहर’ राजेन्द्र यादव द्वारा लिखी गई एक सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है। जिसमें आज के समय में नई पुरानी व पुरानी पीढ़ी के बीच के संघर्ष की कहानी का चित्रण किया गया है। इस कहानी के माध्यम से यह बताने की चेष्टा की गई है कि निरंतर बदलती सामाजिक स्थितियां नई-नई बिरादरी को जन्म देती है, जिससे पुराने वर्ग और उनके जीवन मूल्य बदल जाती है और दोनों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा होती है और यह पुराना वर्ग बिरादरी बाहर होता चला जाता है।
कहानी के मुख्य पात्र में पारस बाबू हैं. जिनकी बेटी मालती अंतर्जातीय विवाह कर लेती है। वह निम्न जाति के लड़के से अंतर्जातीय विवाह करती है। अपनी बेटी का निम्न जाति के लड़के से अंतर्जातीय विवाह पारस बाबू सहन नहीं कर पाते हैं और उन्हें दिल का दौरा पड़ता है, लेकिन वह संभल जाते हैं। बाद में 2 साल बाद उनकी बेटी घर वापस लौटती है तो सब घर के सभी सदस्य बेटी दामाद का खुले दिल से स्वागत करते हैं। घर के सभी सदस्य बेटी के अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन पारस बाबू अपनी बेटी के अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार नहीं कर पाते। उन्हे इस बात का मलाल रहता है कि बेटी बिरादरी बाहर वो भी निम्न जाति के लड़के से विवाह किया। इस कारण वह अलग थलग पड़ जात हैं। इसी उनकी इसी मनोदशा को इस कहानी के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य जगत के एक सशक्त कहानीकार रहे हैं, जिन्होंने हमें कहानियों की रचना की।
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