घ) 'भ्रमरगीत' नाम क्यों पड़ा?
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गोपियों ने भगवान एक भ्रमर को प्रतीक मानकर श्री कृष्ण के लिए एक गीत लिखा था इसलिए इसे भ्रमरगीत कहा जाता है l
- भ्रमरगीत का शाब्दिक अर्थ होता है - भ्रमर का गान अथवा गुंजन या गाना ।
- भ्रमरगीत इस गुंजन का मूल और आधारभूत ग्रंथ श्रीमद्भागवत माना गया है।
- भ्रमरगीत हमारी काव्य परम्परा का एक हिस्सा रहा है l
- भ्रमरगीत में भ्रमर को लक्ष्य करते हुए गाने लिखे जाते हैं l
- जब श्रीकृष्ण ने मथुरा से अपने प्रिय मित्र उद्धव को एक संदेश देने के लिए ब्रज क्षेत्र में भेजा था l उद्धव को यह संदेश कृष्ण वियोग में दुखी गोपियों तक पहुंचाने थी l इस संदेश में कहा गया था कि वे सभी श्रीकृष्ण के प्रति अपने इस अटूट प्रेम-भाव को भुला कर योग-साधना में लीन हो जाए l उद्धव की इन बातों को सुनकर गोपियों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उद्धव को बुरा-भला बोलना चाहा I तभी अचानक संयोगवश एक भँवरा कहीं से उड़ता हुआ वहाँ से गुजरा। गोपियों ने उस भवरे को देखकर और उसकी और संकेत करके अपने हृदय मैं उपस्थित गुस्से को उद्धव को सुनाना आरंभ कर दिया । क्योंकि उद्धव के शरीर का रंग भी भँवरे के समान काला ही था। इस प्रकार पाठ के अनुसार भ्रमरगीत का अर्थ है- उद्धव को लक्षित करके लिखा गया 'गान'। इस भ्रमरगीत में कहीं-कहीं पर गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी 'भ्रमर' कह कर संबोधित किया है l
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