(घ) 'चाँद से थोड़ी-सी गप्पे' कविता में चाँद कब तक दम नहीं लेता है?
(क) तिरछा न होने तक
(ख) गोल न होने तक
(ग) बिलकुल न घटने तक
(घ) बिलकुल गोल न होने तक
(
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option c is the right answer
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'चाँद से थोड़ी-सी गप्पे' कविता में चाँद कब तक दम नहीं लेता है-
ख) गोल न होने तक
- कवि कहना चाहता है कि चंद्रमा को कुछ शिकायत है जो बेहतर होने का एहसास नहीं है क्योंकि जब यह घटता है तो यह घटता ही रहता है और जब बढ़ता है तो यह बिना रुके दिन-ब-दिन जुड़ता जाता है।
- तब तक जब तक यह पूरी तरह गोल न हो जाए।
- कवि की नज़र में, यह सामान्य क्रिया नहीं है, हम यह नहीं समझते हैं कि जब आप गिरते हैं तो आपको शिकायत होती है, आप कम होते जाते हैं, और जब आप बढ़ते हैं, तो आप बस जोड़ते जाते हैं तब तक सांस न लें जब तक आप बिल्कुल गोल, न हो जाए |
#SPJ3
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