Hindi, asked by sachinshrivastava617, 2 months ago

घ) डॉ. अम्बेदकर के आदर्श समाज की कल्पना में 'भ्रातृता' के महत्व को स्पष्ट
कीजिए।
धर बाब की पत्नी या​

Answers

Answered by bala20015
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Answer:

आंबेडकर जी ने जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे ये तर्क दिए हैं-

(क) जाति प्रथा श्रम का ही विभाजन नहीं करती बल्कि यह श्रमिक को भी बाँट देती है। आंबेडकर जी के अनुसार एक सभ्य समाज में इस प्रकार का विभाजन सही नहीं है। इसे मान्य नहीं कहा जा सकता।

(ख) जाति प्रथा में श्रम का जो विभाजन किया गया है, वह व्यक्ति की रुचि को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है। उनके अनुसार जाति प्रथा में यह गलत सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है कि किसी अन्य व्यक्ति की रुचि, योग्तयता तथा क्षमता को अनदेखा कर उसके लिए जीविका के साधन को किसी और व्यक्ति द्वारा निर्धारित करना।

Answered by shreyash27112006
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Answer:

जीवन परिचय-मानव-मुक्ति के पुरोधा बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई० को मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीराम जी तथा माता का नाम भीमाबाई था। 1907 ई० में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद इनका विवाह रमाबाई के साथ हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयार्क और फिर वहाँ से लंदन गए। इन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। 1923 ई० में इन्होंने मुंबई के उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। 1924 ई० में इन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। ये संविधान की प्रारूप समिति के सदस्य थे। दिसंबर, 1956 ई० में दिल्ली में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ – बाबा साहब आंबेडकर बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति थे। हिंदी में इनका संपूर्ण साहित्य भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय ने ‘बाबा साहब आंबेडकर-संपूर्ण वाङ्मय’ के नाम से 21 खंडों में प्रकाशित किया है। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

पुस्तकें व भाषण – दे कास्ट्स इन इंडिया, देयर मेकेनिज़्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट (1917), द अनटचेबल्स, हू आर दे? (1948), हू आर द शूद्राज (1946), बुद्धा एंड हिज धम्मा (1957), थॉट्स ऑन लिंग्युस्टिक स्ट्रेटेस (1955), द प्रॉब्लम ऑफ़ द रूपी (1923), द एबोल्यूशन ऑफ़ प्रोविंशियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया (1916), द राइज एंड फ़ॉल ऑफ़ द हिंदू वीमैन (1965), एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट (1936), लेबर एंड पार्लियामेंट्री डैमोक्रेसी (1943), बुद्धज्म एंड कम्युनिज़्म (1956)।

पत्रिका-संपादन – मूक नायक, बहिष्कृत भारत, जनता।

साहित्यिक विशेषताएँ – बाबा साहब आधुनिक भारतीय चिंतकों में से एक थे। इन्होंने संस्कृत के धार्मिक, पौराणिक और वैदिक साहित्य का अध्ययन किया तथा ऐतिहासिक-सामाजिक क्षेत्र में अनेक मौलिक स्थापनाएँ प्रस्तुत कीं। ये इतिहास-मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे। स्वदेश में कुछ समय इन्होंने वकालत भी की। इन्होंने अछूतों, स्त्रियों व मजदूरों को मानवीय अधिकार व सम्मान दिलाने के लिए अथक संघर्ष किया। डॉ० भीमराव आंबेडकर भारत संविधान के निर्माताओं में से एक हैं। उन्होंने जीवनभर दलितों की मुक्ति व सामाजिक समता के लिए संघर्ष किया। उनका पूरा लेखन इसी संघर्ष व सरोकार से जुड़ा हुआ है। स्वयं डॉ० आंबेडकर को बचपन से ही जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण व अपमान से गुजरना पड़ा था। व्यापक अध्ययन एवं चिंतन-मनन के बल पर इन्होंने हिंदुस्तान के स्वाधीनता संग्राम में एक नई अंतर्वस्तु प्रस्तुत करने का काम किया। इनका मानना था कि दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है और उसके उन्मूलन के बिना कोई भी स्वतंत्रता कुछ लोगों का विशेषाधिकार रहेगी, इसलिए अधूरी होगी।

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