Hindi, asked by sc1242720, 1 month ago


घ. एक राजा को युद्ध से पहले और युद्ध में किन बातों का ध्यान रखना चाहि

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Answered by premnarayanpandey677
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Explanation:

युद्ध में कर्ण की प्रशंसा करने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आप उसकी प्रशंसा क्यों कर रहे है

युद्ध में कर्ण की प्रशंसा करने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आप उसकी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?

एक वर्ष पहले

युद्ध में कर्ण की प्रशंसा करने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आप उसकी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?

जीवन मंत्र डेस्क. महाभारत ग्रंथ में कौरव और पांडवों की कथा से बताया गया है कि हमें सुखी जीवन के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। कौरव और पांडवों के बीच युद्ध चल रहा था। उस समय एक दिन अर्जुन और कर्ण का आमना-सामना हुआ। श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। दोनों यौद्धा एक-दूसरे पर बाणों से प्रहार कर रहे थे। अर्जुन के बाण जैसे ही कर्ण के रथ पर लग रहे थे, कर्ण का रथ बहुत ज्यादा पीछे खिसक जाता था। जबकि कर्ण के बाणों से अर्जुन का रथ थोड़ा सा पीछे खिसकता था। देखकर अर्जुन को खुद के पराक्रम पर अहंकार हो रहा था।

जब-जब कर्ण का बाण अर्जुन के रथ पर लगता तो श्रीकृष्ण उसकी प्रशंसा कर रहे थे, लेकिन अर्जुन के प्रहारों पर चुप रहते। ये देखकर अर्जुन को हैरानी हुई, उसने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे केशव जब मेरे बाण कर्ण के रथ पर लगते हैं तो उसका रथ बहुत पीछे खिसक जाता है, जबकि उसके बाणों से मेरा रथ थोड़ा सा ही खिसकता है। मेरे बाणों की अपेक्षा कर्ण के बाण बहुत कमजोर हैं, फिर भी आप उसकी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?

श्रीकृष्ण ने अर्जुन कहा कि हे पार्थ, ये बात सही नहीं है कि कर्ण के बाण कमजोर हैं। तुम्हारे रथ पर मैं स्वयं विराजमान हूं। ऊपर ध्वजा पर हनुमानजी विराजित हैं, इस रथ के पहियों को स्वयं शेषनाग ने पकड़ रखा है। इतनी शक्तियां तुम्हारे रथ के साथ हैं, फिर भी कर्ण के प्रहार से ये रथ थोड़ा सा भी पीछे खिसक रहा है तो इसका मतलब यही है कि कर्ण के बाण बहुत शक्तिशाली हैं। कर्ण के साथ सिर्फ उसका पराक्रम है।

तुम्हारे साथ मैं स्वयं हूं, लेकिन कर्ण सिर्फ अपने पराक्रम से युद्ध कर रहा है। इसीलिए तुम्हें इस बात का घमंड नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे बाण कर्ण की अपेक्षा ज्यादा शक्तिशाली हैं। ये सुनकर अर्जुन को अपनी गलती का अहसास हो गया।

इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें कभी भी अपनी शक्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए और शत्रु को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए।

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