घ-कार्तिकेय नेपृथ्वी की परिक्रमा की थी, लेकिन मोदक गणेश जी को मिला क्यों?
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शिव-पार्वती से जुड़े कई प्रसंग बड़े ही प्रचलित हैं। इन प्रसंगों को अक्सर भक्तों के बीच में साझा किया जाता रहता है। आज हम भी आपके लिए एक बड़ा ही रोचक प्रसंग लेकर आए हैं। इस प्रंसग में उस घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है जब शिव-पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा ली। इस प्रसंग की शुरुआत उस वक्त होती है जब नारद जी कैलाश पर्वत पहुंचे। नारद को देखकर शिव जी ने उनसे आने का कारण पूछा। नारद ने कहा कि वे उनके दर्शन के लिए चले आए। साथ ही यह भी बताया कि समस्त देवगण उनके पुत्रों के विवाह के आमंत्रण का इंतजार कर रहे हैं। माता पार्वती ने भी गणेश की बातों में हामी भर दी।
प्रसंग के मुताबिक, शंकर जी ने पार्वती से पूछा की अपने किस पुत्र का विवाह सर्वप्रथम करना उचित होगा। इस पर पार्वती ने कहा कि इसके लिए दोनों को अपनी योग्यता और श्रेष्ठता साबित करनी होगी। शंकर जी को पार्वती का यह विचार पसंद आया। कार्तिकेय और गणेश से कहा गया कि वे दोनों पृथ्वी की परिक्रमा करें और परिक्रमा करके सर्वप्रथम आने वाले को श्रेष्ठ माना जाएगा। कार्तिकेय और गणेश इसके लिए सहमत हो गए।
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। लेकिन गणेश जी नहीं गए। बल्कि वह अपने माता-पिता यानी कि शंकर-पार्वती का ही चक्कर लगाने लगे। गणेश जी ने कहा कि जन्म धारण करने वाली प्रत्येक संतान के लिए माता-पिता पृथ्वी पृथ्वी नहीं बल्कि त्रिलोक समान होते हैं। शंकर जी ने भी कहा कि वेद-पुराण के हिसाब से गणेश की बात सही है। इस प्रकार से गणेश जी इस परीक्षा में अव्वल आए।