(घ) कवि के अनुसार हमारा देश महान कैसे बन सकता है?
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Explanation:
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बने
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बनेमेरा देश महान् बने। शब्दार्थ-ध्येय-उद्देश्य, लक्ष्य। श्रेय-कल्याण। विधान-कानून।
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बनेमेरा देश महान् बने। शब्दार्थ-ध्येय-उद्देश्य, लक्ष्य। श्रेय-कल्याण। विधान-कानून।संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) भाग-8 के पाठ-1 ‘मेरा देश महान् बने’ कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री उदयशंकर भट्ट हैं।
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बनेमेरा देश महान् बने। शब्दार्थ-ध्येय-उद्देश्य, लक्ष्य। श्रेय-कल्याण। विधान-कानून।संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) भाग-8 के पाठ-1 ‘मेरा देश महान् बने’ कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री उदयशंकर भट्ट हैं।प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने देश को महान् बनने के भाव को व्यक्त किया है।
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बनेमेरा देश महान् बने। शब्दार्थ-ध्येय-उद्देश्य, लक्ष्य। श्रेय-कल्याण। विधान-कानून।संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) भाग-8 के पाठ-1 ‘मेरा देश महान् बने’ कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री उदयशंकर भट्ट हैं।प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने देश को महान् बनने के भाव को व्यक्त किया है।व्याख्या-हमारा देश महान् तभी बन सकता है-जब सभी देशवासियों का यही एकमात्र उद्देश्य हो। इसी मंगलभावना से सब काम करें। इसके लिए सारा शासन-विधान बनकर लागू हो।
पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ1. एक ध्येय हो, एक श्रेय हो, एक समान विधान बनेमेरा देश महान् बने। शब्दार्थ-ध्येय-उद्देश्य, लक्ष्य। श्रेय-कल्याण। विधान-कानून।संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) भाग-8 के पाठ-1 ‘मेरा देश महान् बने’ कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता श्री उदयशंकर भट्ट हैं।प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने देश को महान् बनने के भाव को व्यक्त किया है।व्याख्या-हमारा देश महान् तभी बन सकता है-जब सभी देशवासियों का यही एकमात्र उद्देश्य हो। इसी मंगलभावना से सब काम करें। इसके लिए सारा शासन-विधान बनकर लागू हो।विशेष-
●भारत देश को महान बनाने के उपाय बताए गए हैं।
2. एक देश हो, एक वेश हो,
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता का
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,जीवन एक समान बने।
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,जीवन एक समान बने।मेरा देश महान् बने।
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,जीवन एक समान बने।मेरा देश महान् बने।शब्दार्थ-वेश-स्वरूप। प्राणवान-सजीव। उठान-उमंग।
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,जीवन एक समान बने।मेरा देश महान् बने।शब्दार्थ-वेश-स्वरूप। प्राणवान-सजीव। उठान-उमंग।संदर्भ-पूर्ववत्
2. एक देश हो, एक वेश हो,प्राणवान हो, सदुद्देश्य हो,एक ध्यान हो निज गुरूता काएक हिमालय सी उठान हो,मरण एक हो, वरण एक हो,जीवन एक समान बने।मेरा देश महान् बने।शब्दार्थ-वेश-स्वरूप। प्राणवान-सजीव। उठान-उमंग।संदर्भ-पूर्ववत्प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जीवन को मरण-वरण एक समान बनाकर अपने देश को महान् बनाने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि-
व्याख्या-हमारा देश अलग-अलग भागों में बँटा हुआ न होकर एक हो। उसका स्वरूप एक हो। वह सजीव और शक्तिशाली हो। उसका सदुद्देश्य हो। उसमें अपने बड़प्पन का ध्यान हो। उसमें हिमालय पर्वत के समान ऊँचा उठने की उमंग हो। उसका जीवन एक समान मरण-वरण का जीवन बना रहे। इस प्रकार मेरा देश महान् बने।