(घ) प्रकृति मनुष्य की सहचरी है इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कयन की
वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
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Explanation:
“प्रकृति मानव की चीर सहचरी रही है | मनुष्य आज स्वार्थ वश उसके संतुलन को बिगाड़ रहा है जो भावी पीढ़ी के लिए घातक है |” इस कथन के समर्थन में अपने विचार लिखिए |
मनुष्य का जीवन पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है | हम अपनी आवश्यकता की लगभग सभी चीजें प्रकृति से प्राप्त करते हैं | लाखों वर्षों पूर्व जब मनुष्य का ज्ञान एक पशु से अधिक नहीं था तब भी मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रकृति से ही प्राप्त करता था | आज जब हम विज्ञान की ऊँचाइयों को छू रहे हैं तब भी हमारी आवश्यकता की पूर्ती प्रक्रति से ही होती है | प्रकृति को इसी लिए माता कहा जाता है क्योंकि यह हमारा पालन पोषण करती है | अनंत काल से यह हमारी सहचरी रही है | प्रकृति का मनुष्य जीवन में इतना महत्त्व होते हुए भी हम अपने लालच के कारण उसका संतुलन बिगाड़ रहे हैं |
धरती पर जीवन का आरम्भ और जीवन को चलाए रखने का काम प्रकृति की बड़ी पेचीदा प्रक्रिया है। प्रकृति ने जो कुछ पैदा किया वह फिजूल नहीं है। हर जीव का अपना महत्व है। वनस्पति से लेकर जीवाणुओं, कीड़े-मकोड़ों और मानव तक की जीवन प्रक्रिया को चलाए रखने में अपना अपना योगदान रहा है।
मनुष्य के जीवित रहने के लिए प्रकृति में हवा और पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहना चाहिए। इसके साथ साथ अनेक प्रकार के जीव जंतु व वनस्पतियां भी बनी रहनी चाहिए। समस्त भोजन मिट्टी के अंदर छुपा रहता है जिसे खाद्य पदार्थ के रूप में निकालने का काम वनस्पति करती है। जिसमें सूर्य की किरणें उसकी मदद करती हैं। वनस्पति जैसे घास, पत्ती, फल, फूल को खाकर शाकाहारी जीव जिंदा रहते हैं और शाकाहारी जीवों को खाकर मांसाहारी जीव जिंदा रहते हैं और अंत में जीवों के मृत शरीर मिट्टी के अंदर सड़कर उसकी उपजाऊ शक्ति को बनाए रखते हैं। उस उपजाऊ मिट्टी में फिर वनस्पति पैदा होती जाती है और जीवन चक्र घूमने लगता है।
वनस्पति तेज बारिश में मिट्टी कटाव को रोकती है और बारिश लाने और मौसम चक्र को ठीक ठाक बनाए रखने में मदद करती है। पानी को अपनी जड़ों में रोक कर पूरा साल बहने वाले चश्मों, नदी नालों के जल को संरक्षित करने का काम भी करती है और अशुद्ध वायु को खा कर खुद बढ़ती है और अन्य जीवों के लिए शुद्ध वायु आक्सीजन वातावरण में छोड़ती है। दूसरे शब्दों में वनस्पति सारे जीवन चक्र को चलाने में सबसे केंद्रीय भूमिका निभाती है। इस प्रकार हम पाते हैं कि प्रकृति में मौजूद हर चीज का अपना महत्त्व है और वह हमारे जीवन को प्रभावित करती है | यदि कोई एक चीज भी नष्ट हो जाये तो उसका प्रभाव पूरे जीवन चक्र पर पड़ता है | मनुष्य इस बात को समझ नहीं पा रहा है |
सृष्टि के नियंता ने मनुष्य को असीमित क्षमता इसलिए नहीं दी है कि वह उसकी रचना को बदल देने का प्रयास करे। आज कई क्षेत्रों में ऐसा ही हो रहा है। व्यापक विनाश का सामान जुटाने से लेकर मनुष्य नियंता की सत्ता को ही चुनौती देने लगा है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और जीव-जंतुओ के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की जा रही है। वनों का तेजी से विनाश हो रहा है। उद्योगों की स्थापना तथा ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए प्रकृति के असंतुलन के खतरे की भी परवाह नहीं है। इसके शुरूआती दुष्परिणाम मनुष्यों के साथ जीव-जंतुओं के बढ़ते संघर्ष के रूप में देखें जा सकते हैं। यही स्थिति रही तो हमारी आनेवाली पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय है |
प्रकृति में असंतुलन के कारण आज मौसम जिस तरह से बदल रहा है उसका नतीजा बहुत भयावह हो सकता है | यदि प्रकृति का व्यवहार इस तरह अप्रत्याशित होता गया तो भविष्य में न कृषि हो पाएगी न उद्योग पनप पाएँगे | प्राकृतिक संसाधन भी अब धीरे-धीरे खत्म हो चले हैं | मनुष्य इसी तरह अनियंत्रित व्यवहार करता रहा तो हो सकता है हमारी भविष्य की पीढ़ी को दोबारा पाषाण युग में लौटना पद जाए | अतः आज यह अत्यावश्यक हो गया है कि हम हर उस गतिविधि पर रोक लगायें जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है | तभी हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक सुरक्षित भविष्य दे पाएँगे |