Hindi, asked by prashantpratapsingh, 16 days ago

घिर आई आषाढ़ी संध्या डूब गया दिन ढल कर। बंधनहीन वृष्टि की धारा l झर-झर झरती गल कर घर के कोने बैठ विजन में क्या जो सोचूँ अपने मन में, भीगी हवा यूथिका वन में कह क्या जाती चल कर आज लहर लहराई हिय में ओदे वन का फूल महक कर. मेरे प्राण रुलाता।
Please provide the 'bhavarth' of this poem.

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Answered by omsaielectricals95
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घिर आई आषाढ़ी संध्या डूब गया दिन ढल कर। बंधनहीन वृष्टि की धारा l झर-झर झरती गल कर घर के कोने बैठ विजन में क्या जो सोचूँ अपने मन में, भीगी हवा यूथिका वन में कह क्या जाती चल कर आज लहर लहराई हिय में ओदे वन का फूल महक कर. मेरे प्राण रुलाता।

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