घीसा कौन था? वह कैसा विद्यारथी था?
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वे निरन्तर घड़ी की तरह खुली मेरे मुख पर टिकी ही रहती थीं। मानो मेरी सारी विद्या-बुद्धि को सीख लेना ही उनका ध्येय था। लड़के उससे कुछ खिंचे-खिंचे से रहते थे। इसलिए नहीं कि यह कोरी था, वरन् इसलिए कि किसी की मां, किसी की नानी, किसी की बुआ आदि ने घीसा से दूर रहने की नितांत आवश्यकता उन्हें कान पकड़-पकड़ कर समझा दी थी।
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