Hindi, asked by dipakchelak88, 7 months ago

घिसू किस कहानी का पात्र है​

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Answered by sinhamanoj683
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Answer:

kya pata aaur ye kis chapter ka question hai

Answered by kshitijgrg
0

Answer:

कफन कहानी में  घीसू का चरित्र चित्रण किया गया  हैं।

Explanation:

कफन कहानी: इसका प्रारंभ इस प्रकार होता है- झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृत्ति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अंधकार में लय हो गया था। जब निसंग भाव से कहता है कि वह बचेगी नहीं तो माधव चिढ़कर उत्तर देता है कि मरना है तो जल्दी ही क्यों नहीं मर जाती-देखकर भी वह क्या कर लेगा। लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है। इस औरत ने घर को एक व्यवस्था दी थी, पिसाई करके या घास छिलकर वह इन दोनों बगैरतों का दोजख भरती रही है। और आज ये दोनों इंतजार में है कि वह मर जाये, तो आराम से सोयें। आकाशवृत्ति पर जिंदा रहने वाले बाप-बेटे के लिए भुने हुए आलुओं की कीमत उस मरती हुई औरत से ज्यादा है। उनमें कोई भी इस डर से उसे देखने नहीं जाना चाहता कि उसके जाने पर दूसरा आदमी सारे आलू खा जायेगा। हलक और तालू जल जाने की चिंता किये बिना जिस तेजी से वे गर्म आलू खा रहे हैं उससे उनकी मारक गरीबी का अनुमान सहज ही हो जाता है। यह विसंगति कहानी की संपूर्ण संरचना के साथ विडंबनात्मक ढंग से जुड़ी हुई है। घीसू को बीस साल पहले हुई ठाकुर की बारात याद आती है-चटनी, राइता, तीन तरह के सूखे साग, एक रसेदार तरकारी, दही, चटनी, मिठाई। अब क्या बताऊँ कि उस भोज में क्या स्वाद मिला।…लोगों ने ऐसा खाया, किसी से पानी न पिया गया…। यह वर्णन अपने ब्योरे में काफी आकर्षक ही नहीं बल्कि भोजन के प्रति पाठकीय संवेदना को धारदार बना देता है। इसके बाद प्रेमचंद लिखते हैं- और बुधिया अभी कराह रही थी। इस प्रकार ठाकुर की बारात का वर्णन अमानवीयता को ठोस बनाने में पूरी सहायता करता है।कफन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कहानी है जो श्रम के प्रति आदमी में हतोत्साह पैदा करती है क्योंकि उस श्रम की कोई सार्थकता उसे नहीं दिखायी देती है। क्योंकि जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से बहुत-कुछ अच्छी नहीं थी और किसानों के मुकाबले में वे लोग, जो किसानों की दुर्बलताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा संपन्न थे, वहाँ इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी।… फिर भी उसे तक्सीन तो थी ही कि अगर वह फटेहाल है तो कम से कम उसे किसानों की-सी जी-तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती। उसकी सरलता और निरीहता से दूसरे लोग बेज़ा फायदा तो नहीं उठाते।

बीस साल तक यह व्यवस्था आदमी को भर पेट भोजन के बिना रखती है इसलिए आवश्यक नहीं कि अपने परिवार के ही एक सदस्य के मरने-जीने से ज्यादा चिंता उन्हें अपने पेट भरने की होती है। औरत के मर जाने पर कफन का चंदा हाथ में आने पर उनकी नियत बदलने लगती है, हल्के से कफन की बात पर दोनों एकमत हो जाते हैं कि लाश उठते-उठते रात हो जायेगी। रात को कफन कौन देखता है? कफन लाश के साथ जल ही तो जाता है। और फिर उस हल्के कफन को लिये बिना ही ये लोग उस कफन के चन्दे के पैसे को शराब, पूड़ियों, चटनी, अचार और कलेजियों पर खर्च कर देते हैं। अपने भोजन की तृप्ति से ही दोनों बुधिया की सद्गति की कल्पना कर लेते हैं-हमारी आत्मा प्रसन्न हो रही है तो क्या उसे सुख नहीं मिलेगा। जरूर से जरूर मिलेगा। भगवान तुम अंतर्यामी हो। उसे बैकुण्ठ ले जाना। अपनी आत्मा की प्रसन्नता पहले जरूरी है, संसार और भगवान की प्रसन्नता की कोई जरूरत है भी तो बाद में। अपनी उम्र के अनुरूप घीसू ज्यादा समझदार है। उसे मालूम है कि लोग कफन की व्यवस्था करेंगे-भले ही इस बार रूपया उनके हाथ में न आवे.नशे की हालत में माधव जब पत्नी के अथाह दुःख भोगने की सोचकर रोने लगता है तो घीसू उसे चुप कराता है-हमारे परंपरागत ज्ञान के सहारे कि मर कर वह मुक्त हो गयी है। और इस जंजाल से छूट गयी है। नशे में नाचते-गाते, उछलते-कूदते, सभी ओर से बेखबर और मदमस्त, वे वहीं गिर कर ढेर हो जाते हैं।

#SPJ2

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