घीसा को देखकर "आँखें ही नहीं मेरा रोम-रोम गीला हो गया” लेखिका ने ऐसा क्यों कहा?
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लेखिका को घीसा जैसा दूसरा शिष्य ढूँढ़ने पर भी नहीं मिला। "आँखें ही नहीं, मेरा रोम-रोम गीला हो गया। ... उसने कहा कि यदि "गुरु साहब न लें तो घीसा रात भर रोएगा; छुट्टी भर रोएगा।" गुरु के प्रति इस भक्ति को देखकर स्वयं लेखिका ने कहा -"उस तट पर किसी गुरु को किसी शिष्य से कभी ऐसी दक्षिणा मिली होगी, ऐसा मुझे विश्वास नहीं।
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