घीसा ने लेखिका को क्या उपहार दिया
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जब फिर उस ओर जाने का मुझे अवकाश मिल सका, तब घीसा को उसके भगवान जी ने सदा के लिए पढ़ने से अवकाश दे दिया था - आज वह कहानी दोहराने की मुझ में शक्ति नहीं है; पर सम्भव है आज के कल, कल के कुछ दिन, दिनों के मास और मास के वर्ष बन जाने पर मैं दार्शनिक के समान धीर-भाव से उस छोटे जीवन का उपेक्षित अंत बन सकूंगी।
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