(घ) “स्वतंत्रता का मोल दो, कड़ी युगों की खोल दो" का आशय स्पष्ट कीजिए ।
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अगर कोई हम से इन पंक्तियों के रचियेता का नाम पूछे, तो हम कहेंगे, हरिवंश राय बच्चन। बहुत जगह यह कविता बच्चन जी के नाम से के साथ ही साझा की जाती है और कई मौकों पर अमिताभ बच्चन ने भी इसे पढ़ा है। ऐसे में, जाहिर है कि शायद ही कोई जानता हो कि यह कविता, हरिवंश राय बच्चन ने नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य के एक और महान कवि, सोहन लाल द्विवेदी ने लिखी है।
अमिताभ बच्चन ने भी अपनी एक फेसबुक पोस्ट में इस बार की पुष्टि की है।
22 फरवरी 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में बिंदकी तहसील के सिजौली नामक गाँव में जन्में सोहनलाल द्विवेदी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भी थे। आज़ादी के संघर्ष के दौरान उनकी ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के लिए उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी गयी।
गाँधी जी के सिद्धांतों से प्रभावित द्विवेदी की काव्य-शैली बहुत ही सरलता से दिल को छू जाने वाली थी। उनकी कविताएँ आम लोगों के लिए होती थीं। स्वतंत्रता सेनानियों के मन में जोश जगाने में हमेशा ही उनकी कविताएँ कामयाब रहीं। साल 1941 में देश प्रेम से भरपूर ‘भैरवी’, उनका पहला प्रकाशित काव्य-संग्रह था।
इसके आलावा उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: ‘वासवदत्ता,’ ‘पूजागीत,’ ‘विषपान’ और ‘जय गांधी’ आदि। उन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएँ और बाल गीत लिखे और इसी वजह से उन्हें ‘बाल साहित्य’ का सृजनकार भी कहा जाता है।
हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने एक बार लिखा था,
“जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वे सोहनलाल द्विवेदी थे। गाँधीजी पर केन्द्रित उनका गीत ‘युगावतार’ या उनकी चर्चित कृति ‘भैरवी’ की पंक्ति ‘वन्दना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहाँ बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो’ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सबसे अधिक प्रेरणा गीत था।”
पद्म श्री से सम्मानित इस राष्ट्रकवि ने 1 मार्च 1988 को दुनिया से विदा ली। उनके जाने के इतने सालों बाद भी जब लोग उनकी कविताएँ पढ़ते हैं, तो दिल खुद-ब-खुद देशभक्ति और गर्व की भावना से भर जाता है।
आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िए उनकी