Hindi, asked by jitendergera, 5 hours ago

घायल हंस और राजकुमार की कहानी​

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Answered by beramneetkaur
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Answer:

एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ बाग में घुमने के लिए गये। जहां सिद्धार्थ कोमल हृदय का बालक था वहीं देवदत्त झगडालु व कठोर स्वभाव का था।

सिद्धार्थ की सभी प्रशंसा करते थे। देवदत्त की प्रशंसा कोई नहीं करता था। इसलिए देवदत्त मन ही मन सिद्धार्थ से जलता था। (Story Kids) जहाँ वे दोनां घुम रहे थे, उनसे थोडी ही दूरी पर एक हंस उड रहा था।

उस हंस को देखकर सिद्धार्थ बहुत प्रसन्न हो रहा था। तभी देवदत्त ने कमान पर तीर चढाया और हंस की ओर छोड दिया। तीर सीधा जाकर हंस को लगा। वह घायल हो गया और छटपटा कर नीचे गिर पडा।

सिद्धार्थ ने दौडकर उस घायल हंस को उठाया। उसने हंस के घायल शरीर से बह रहे लहु को साफ किया। और उसे पानी पिलाया, तभी देवदत्त वहां आ पहुंचा । उसने क्रोध से सिद्धार्थ की ओर देखा और बोला- इस हंस को चुपचाप मुझे दे देा सिद्धार्थ इसे मैंने तीर मारकर नीचे गिराया है

नहीं! सिद्धार्थ ने हंस की पीठ सहलाते हुए उत्तर दिया- मैं इस हंस को तुम्हे नही दे सकता। तुम निर्दयी हो तुमने इस निर्दोष हंस पर तीर चलाया है। यदि मैं इसे न बचाता तो इस बेचारे की जान चली जाती ।

देखो सिद्धार्थ! देवदत्त उसे घुरकर बोला यह हंस मेरा है। इसे मैंने तीर मारकर नीचे गिराया है। इसे चुपचाप मुझे देदो। यदि नहीं दोगे तो मैं राज दरबार में जाकर तुम्हारी शिकायत करूंगा।

सिद्धार्थ ने उसे हंस देने से साफ-साफ़ मना कर दिया। देवदत्त राजा शुद्धोदन के दरबार में जा पहुचा। और सिद्धार्थ की शिकायत की। शुद्धोदन ने उसकी शिकायत को ध्यानपूर्वक सुना फिर सिद्धार्थ को बुलावा भेजा।

कुछ ही देर में सिद्धार्थ हंस को लेकर राज दरबार में उपस्थित हो गया। राज दरबार के उचें सिंहासन पर राजा शुद्धोदन बैंठे थे आसपास के नीचे आसनो पर राज्यमंत्री, तथा अन्य पदाधिकारी बैठे थे। कई सैनिक हथियार लिए द्वार के निकट खडे थे।

शुद्धोदन के संकेत करने पर देवदत सिर झुकाकर बोला- महाराज! जो हंस इस समय सिद्धार्थ के पास हैं वह मेरा हैं, इसे मैंने तीर मारकर प्रथ्वी पर गिराया था। सिद्धार्थ ने इसे उठाकर इस पर अपना अधिकार कर लिया है। यह हंस मेरा हैं कृपया इसे मुझे दिलाया जाये।

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