घमंड का सर नीचा काहनी 80-100 सब्दो मे लिखो
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एक गांव में उज्वलक नाम का बढ़ई रहता था । वह बहुत गरीब था । ग़रीबी से तंग आकर वह गांव छो़ड़कर दूसरे गांव के लिये चल पड़ा । रास्ते में घना जंगल पड़ता था । वहां उसने देखा कि एक ऊंटनी प्रसवपीड़ा से तड़फड़ा रही है । ऊँटनी ने जब बच्चा दिया तो वह उँट के बच्चे और ऊँटनी को लेकर अपने घर आ गया । वहां घर के बाहर ऊँटनी को खूंटी से बांधकर वह उसके खाने के लिये पत्तों-भरी शाखायें काटने वन में गया । ऊँटनी ने हरी-हरी कोमल कोंपलें खाईं । बहुत दिन इसी तरह हरे-हरे पत्ते खाकर ऊंटनी स्वस्थ और पुष्ट हो गई । ऊँट का बच्चा भी बढ़कर जवान हो गया । बढ़ई ने उसके गले में एक घंटा बांध दिया, जिससे वह कहीं खोया न जाय ।
दूर से ही उसकी आवाज सुनकर बढ़ई उसे घर लिवा लाता था । ऊँटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी पलते थे । ऊँट भार ढोने के भी काम आने लगा ।
उस ऊँट-ऊँटनी से ही उसका व्यापर चलता था । यह देख उसने एक धनिक से कुछ रुपया उधार लिया और गुर्जर देश में जाकर वहां से एक और ऊँटनी ले आया । कुछ दिनों में उसके पास अनेक ऊँट-ऊँटनियां हो गईं । उनके लिये रखवाला भी रख लिया गया । बढ़ई का व्यापार चमक उठा । घर में दुधकी नदियाँ बहने लगीं ।
शेष सब तो ठीक था----किन्तु जिस ऊँट के गले में घंटा बंधा था, वह बहुत गर्वित हो गया था । वह अपने को दूसरों से विशेष समझता था । सब ऊँट वन में पत्ते खाने को जाते तो वह सबको छो़ड़कर अकेला ही जंगल में घूमा करता था ।
उसके घंटे की आवाज़ से शेर को यह पता लग जाता था कि ऊँट किधर है । सबने उसे मना किया कि वह गले से घंटा उतार दे, लेकिन वह नहीं माना ।
एक दिन जब सब ऊँट वन में पत्ते खाकर तालाब से पानी पीने के बाद गांव की ओर वापिस आ रहे थे, तब वह सब को छो़ड़कर जंगल की सैर करने अकेला चल दिया । शेर ने भी घंटे की आवाज सुनकर उसका पीछा़ किया । और जब वह पास आया तो उस पर झपट कर उसे मार दिया ।
सीख : घमंड का सिर नीचा ।
Answer:
एक बार घौडापुर में एक राजा रहते थे। उनकी प्रजा उन्हें महान बादशाह शेरसिंह कहकर बुलाती थी। राजा ने अपने राज्य में सुख संपन्नता और शान्ति बनाई हुई थी। राजा की एक ही पेरशानी थी चंदनपुर का राजा। चंदनपुर का राजा भूकमसिंह अति बलवान, कुशल और शक्तिशाली था। भूकमसिंह घौंडापुर पर हमला करने में असमर्थ था क्योंकि शेरसिंह ने बाकि राज्यों से गहरी मित्राता कर रखी थी। शेरसिंह का एक इकलौता पुत्र था। उसका नाम गधा सिंह था। दुलार प्यार ने उसे घमंडी बना दिया था। उसकी सब वस्तुएँ और वस्त्र विदेश से आते थे। वह राजा का पुत्र होते हुए समझाता था कि वह सबकुछ कर सकता है। यही विचार से वह हर कार्य अपने मन से करता और किसी की बात न सुनता। अपनी कक्षा में तीव्र बुद्धि वाले छात्रों का अपहरण करवा देता। कोई अध्यापकों को मिटवाता और जो कोई उसकी बात न सुनता वह मगरमच्छों का खाना बनता। धीरे-धीरे वह बड़ा हो गया। उसका व्यवहार एकदम बदलने लगा। वह अब अपने पिता पर क्रोध करने लगा और उनकी बातों का विरोध करने लगा। राजा ने अपने पुत्र को महल के कमरे में हमेशा बंद करवाने को कहा। किसी तरीके से गधा सिंह ने कमरे का किवाड़ तोड़ा। तलवार ली और अपने पिता का कत्ल करके अपने आप को राजा घोषित किया। भूकम सिंह इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था। प्रजा की समस्याओं का निदान नहीं करता था। मनोरंजन के लिये मासूम लोगों को जानवरों से लड़ने के लिये कहता। यही नहीं उसने राज्य में कहलवादिया कि उसके अलावा सब अछूत है। प्रजा को नौकर की तरह रखता। रोज 10 युवकों को बुलाता और उन्हें खूब मारता जब तक वह कहते नहीं कि गधा सिंह सबसे धनवान और ताकतवर है और वह अभी तक का सबसे अच्छा राजा है। उसकी सेना भी उससे चिड़ने लगी। आसपास के राज्यों को पत्रों में लिखता कि वह उसे अपने राज्य सौंप दें वरना वह उनको शेरों को दे देगा जब वह उनपर वार करेगा। यही नहीं उसने भूकमसिंह को लिख दिया कि वह राजा के रूप में गधा है और सिर्फ बोलना जानता है। भूकमसिंह क्रोधित हो गये। अपनी सेना ली और गधा सिंह का सर्वनाश करने को कहा। बाकि राज्यों की सेना भी मिल गई। गधा सिंह की सेना ने लड़ने को मना कर दिया और भूकमसिंह से मिल गई। गधा सिंह न शहर के किवाड़ बंद करवाने को कहा परंतु प्रज्ञा ने आज्ञा का पालन नहीं किया। गधा सिंह पकड़ा गया। उसका घमंड अभी तक नहीं गया। उसने कहा कि वह उन्हें पैसे दे रहा है ताकि वे नौकर बन जाये। क्रोधित होकर भूकमसिंह ने उसका सिर काट दिया। घमंड ने गधा सिंह का सर्वनाश कर दिया।
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