Ghamand ke bare mein kuch point
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महाभारत में अब तक आपने पढ़ा...जब भगवान कृष्ण ने ये सब बातें कहीं तो सभी सभासदों को रोमांच हो आया और वे चकित से हो गए। सब राजाओं को इस तरह मौन देखकर उस सभा में परशुरामजी खड़े होकर बोले तुम हर तरह का संदेह छोड़कर मेरी एक सच्ची बात सुनो। वह तुम्हे अच्छी लगे तो उसके अनुसार आचरण करो अब आगे...
दम्भोद्धव नाम का एक राजा था। वह महारथी सम्राट था। वह सभी ब्राह्मण और क्षत्रियों से पूछा करता था कि क्या ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रो में कोई ऐसा शस्त्रधारी है जो युद्ध में मेरे समान या मुझसे बढ़कर हो? इस तरह कहते हुए वह राजा बहुत घमंड में पूरी पृथ्वी पर घूमता था।
राजा का ऐसा घमंड देखकर एक ब्राह्मण ने बोला इस पृथ्वी पर ऐसे दो ही सत्पुरुष है जो तुम्हे पराजित कर सकते हैं। उनका नाम नर और नारायण है। वे इस समय मनुष्य लोक में आए हुए हैं। राजा को यह बात सहन नहीं हुई।
वह उसी समय बड़ी भारी सेना सजाकर नर और नारायण के पास गया। मुनियों ने राजा को देख उनका आदर सत्कार किया पूछा- कहिए हम आपका क्या काम करें? राजा ने कहा इस समय मैं आपसे युद्ध करने के लिए आया हूं। मेरी बहुत दिनों की अभिलाषा है, इसलिए इसे स्वीकार करके ही आप मेरा आतिथ्य कीजिए। नर और नारायण ने राजा को बहुत समझाया लेकिन जब वह उनकी बात नहीं समझ पाया तब भगवान नर ने एक मुट्ठी सींके लेकर कहा अच्छा तुम्हारी युद्ध की लालसा है तो शस्त्र उठा लो और अपनी सेना को तैयार करो।
युद्ध शुरू हुआ। जब सैनिकों ने बाण वर्षा आरंभ की नर ने एक सींक को अमोघ अस्त्र के रूप में बदलकर छोड़ा। जिससे सभी वीरों के आंख, नाक और कान सीकों से भरा देखकर राजा दम्भोद्धव उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला मेरी रक्षा करो। तब दोनों मुनियों ने उसे समझाया तुम लोभ और अहंकार छोड़ दो। तुम किसी का अपमान मत करना। इसके बाद दम्भोद्धव उन दोनों मुनियों से माफी मांगकर नगर लौट आया।