ghamand manushya ka sabse bada Shatru as par nibandh
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जीवन प्रगति में मनुष्य का अहंकार बहुत बड़ा बाधक है। इसके वशीभूत होकर चलने वाला मनुष्य प्रायः पतन की ओर ही जाता है। श्रेय पथ की यात्रा उसके लिये दुरूह एवं दुर्गम हो जाती है। अहंकार से भेद बुद्धि उत्पन्न होती है जो मनुष्य को मनुष्य से ही दूर नहीं कर देती, अपितु अपने मूलस्रोत परमात्मा से भी भिन्न कर देती है। परमात्मा से भिन्न होते ही मनुष्य में पाप प्रवृत्तियाँ प्रबल हो उठती है।
रावण की विद्वता संसार प्रसिद्ध है। उसके बल की कोई सीमा नहीं थी। ऐसा नहीं सोचा जा सकता कि उसमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि वह अपना हित अहित न समझ पाता। वह एक महान बुद्धिमान तथा विचारक व्यक्ति था। उसने जो कुछ सोचा और किया, वह सब अपने हित के लिए ही किया। किन्तु उसका परिणाम उसके सर्वनाम के रूप में सामने आया। इसका कारण क्या था? इसका एकमात्र कारण उसका अहंकार ही था। अहंकार के दोष ने उसकी बुद्धि उल्टी कर दी। इसी कारण उसे अहित से हित दिखलाई देने लगा। इसी दोष के कारण उसके सोचने समझने की दिशा गलत हो गई थी और वह उसी विपरीत विचार धारा से प्रेरित होकर विनाश की ओर बढ़ता चला गया।
वैसे तो अहंकारी कदाचित ही उदार अथवा पुण्य परमार्थी हुआ करते है। पाप का गट्ठर सिर पर रखे कोई पुण्य में प्रवृत्त हो सकेगा- यह सन्देहजनक है। पुण्य में प्रवृत्त होने के लिए पहले पाप का परित्याग करना होगा। स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए रोगी को पहले रोग से मुक्त होना होगा। रोग से छूटने से पहले ही यदि वह स्वास्थ्यवर्धक व्यायाम में प्रवृत्त हो जाता है तो उसका मन्तव्य पूरा न होगा।
लोक-परलोक का कोई भी श्रेय प्राप्त करने में अहंकार मनुष्य का सबसे विरोधी तत्व है। लौकिक उन्नति अथवा आत्मिक प्रगति पाने के लिए किये जाने वाले प्रयत्नों में अहंकार का त्याग सबसे प्रथम एवं प्रमुख प्रयत्न है। इसमें मनुष्य को यथाशीघ्र तत्पर हो जाना चाहिए। अहंकार के त्याग से उन्नति का मार्ग तो प्रशस्त होता ही है साथ ही निरहंकार स्थिति स्वयं में भी बड़ी सन्तोष एवं शाँतिदायक होती है।
घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है :
"अति दर्पे हतो लंका ,अति गर्वें रावण"
अत्यंत घमंड के कारण सोने की लंका जल गयी और रावण मारा गया I रावण बहुत ही ज्ञानी और शिव भक्त था .लेकिन उसमे अहंकार बहुत था I
वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता था I ज्ञान अर्जित करना धन या यश अर्जित करना ये स्वयं आपके लिए है I लेकिन यदि आप अपनी इन विशेषताओं पर घमंड करते हैं ,तो आप अपना सबकुछ खो बैठते हैं Iआपके प्रति न वह भाव रह जाता है न वो सम्मान I आपके लिए धन यश शत्रु सामान लगने लगता है I
एक बार विश्वामित्र को घमंड हुआ कि मैं राजर्षि हूँ तो ये दुनिया मेरी मुट्ठी में होनी चाहिए ,विश्वामित्र ने सोचा तपोबल से ब्रह्मा ऋषि मैं तुरंत बन जाऊँगा इसके लिए जंगल जंगल तपस्या की और वशिष्ठ से नंदिनी गए मांगने गए क्यूंकि उसकी सेवा से सबकुछ प्राप्त हो सकता था I लेकिन महिर्षि वशिष्ठ ने वो गाय नहीं दी क्यूंकि वे स्वयं उसकी सेवा करते थे I वे किसी और को वो गाय दे भी नहीं सकते थे I
बस विश्वामित्र का क्रोध और अहंकार चरमसीमा पर आ गया I परिणाम स्वरुप उन्हें आदर से नहीं पूजा जाने लगा इसलिए घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है I घमंड किसी को आगे बढ़ने ही नहीं देता Iऔर घमंडी व्यक्ति दुसरे को आगे बढ़ते देख भी नहीं सकता I
सिकंदर को बिश्वा विजय की लालसा थी लेकिन वहां भी अपने शौर्य और पराक्रम के मद में चूर रहा और अंत में मिला क्या ,कब्र में बाहर किये हुए दोनों हाथ , लोगों को ये सीख देने कि जब सिकंदर पृथ्वी पर कुछ ले न जा सका ,तो संसार में कोई भी कुछ लेकर जा नहीं सकता I घमंड के कारण कितना रक्तपात होता है Iथोड़ी सी आन बान शान पर महाभारत जैसा युद्ध हो जाता है I इसलिए ज्ञान हो बल हो धन हो या यश हो इस पर ज़रा भी घमंड न करें Iतब लगातार प्रगति होगी I
"वृक्ष कबहूँ नहि फल भखै
नदी न संचय नीर,
परमार्थ के कार्य में ,
साधू न धरा सरीर "
या
"नमन्ति फलेनु वृक्षाः नमन्ति गुनिनो जनाः"
अर्थात जिस वृक्ष में बहुत फल लगते हैं वो डाल नीचे झुखी होती है I जो गुणी लोग होते हैं वे हमेशा विनम्र होते हैं I