Hindi, asked by tusharprajapati5055, 3 months ago

घनानंद का जीवन परिचय लिखिए ​

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Answered by awssales135
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जीवन परिचय

घनानंद रीतिकाल की रीतिमुक्त स्वच्छन्द काव्यधारा के सुप्रसिद्ध कवि है। आचार्य शुक्ल के मतानुसार इनका जन्म सवंत् 1746 में दिल्ली में हुआ तथा संवत् 1817 में वृंदावन में इनका देहावसन हुआ। ये दिल्ली के रहने वाले एक कायस्थ थे और सम्राट मुहम्मद शाह बादशाह के मीर मुंशी थे। महाकवि घनानन्द के विभिन्न नामों के प्रति विद्वानों में मतैक्य नहीं है। ये नाम निम्नलिखित हैं- घन आनन्द, ’आनन्द घन या आनन्दघन अथवा आनन्द के घन,’ आनन्द निधान तथा आनन्द।’ यह तीनों एक ही व्यक्ति के नाम हैं या अलग-अलग व्यक्ति के, यह प्रश्न विवाद का है। आनन्दनिधान नाम के लिये निम्नलिखित उद्धरण प्रस्तुत हैं :-

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै,

लड़कीली बानि उर ते अरति है।

वहै गति लैन, औ बजावनि ललित बैन,

वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।

आनंदनिधान प्रान प्रीतम सुजान जू की,

सुधि सब-भौतिन सो बेसुधि करती है।।

घनानन्द के समय को लेकर भी विवाद है। शिवसिंह सरोज सेंगर के मत से घनानन्द का समय सम्वत् 1617 है। वे आनन्दघन नाम को मानकर यह समय निर्धारित करते हैं। जनश्रुति एवं विद्वानों के आधार पर यह कहा जाता है कि घनानन्द जी का जन्म सम्वत् 1746 के आस पास हुआ था। कतिपय विद्वान् इनका जन्म सम्वत् 1715, 1630, तथा 1683 मानते हैं। आज इनका जन्म सम्वत् 1746 सप्रमाण स्वीकार गया है, अन्य तीनों ही जन्म सम्वत् संदिग्ध हैं, आपका जन्म स्थान दिल्ली के आस पास हुआ था या दिल्ली में ही स्वीकारा जा सकता है। अधिकांश विद्वान् इस मत के समर्थक हैं। कुछेक विद्वान् इनके जन्म स्थान को वृन्दावन एवं बुलन्दशहर के पास का मानते हैं। आपका जन्म भटनागर कायस्थ परिवार में हुआ, आपकी शिक्षा फारसी भाषा के द्वारा शुरू हुई थी, बचपन से ही आपकी रुचि विद्यााध्ययन की ओर विशेष थी। जनश्रुति के आधार पर आप अबुलफजल के शिष्य माने जाते हैं। इन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा एवं बुद्धि से शीघ्र ही फारसी का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था। इसके बाद आप सम्राट मुहम्मदशाह ’रंगीले’के मीर मुंशी पद पर नियुक्त हो गए थे। आपने अपनी आकर्षक बुद्धि एवं प्रतिभा सम्पन्नता के निदान स्वरूप शीघ्र पदोन्नति पा ली थी। और आप धीरे-धीरे सम्राट के ’खास कलम’ अर्थात् प्राइवेट सेक्रेटरी, हो गए। घनानंद की मृत्यु के बारे में विद्वानों के दो प्रकार के मत है। प्रथम मत के अनुसार नादिरशाह के आक्रमण के समय मथुरा में सैनिकों द्वारा प्रथम प्रश्नपत्र घनानंद की मृत्यु हुई। किन्तु इस मत का खण्डन इस आधार पर हो जाता है कि नादिरशाह द्वारा किया गया कत्ले आम दिल्ली में हुआ था न कि मथुरा में। दूसरे इस आक्रमण और घनानंद की मृत्यु के समय में ही अंतर है। द्वितीय मत ही अब मान्य है, वह यह की संवत् 1817 (सन् 1660 ई.) में अब्दुलशाह दुर्रानी ने जब दूसरी बार मथुरा में कत्लेआम किया था इसी में घनानंद की मृत्यु हुई।

घनानन्द की रचनायें

घनानंद द्वारा लिखित कई ग्रन्थ है। सबसे पहले भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने ’सुजान शतक’ नामक पुस्तक में घनानंद कविताओं का संकलन किया। इसके अतिरिक्त ’सुजानहित’तथा ’सुजान सागर’ नामक संकलन भी प्रकाश में आया। इस क्षेत्र में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा घनानंद पर किया गया शोध कार्य बड़ा सार्थक सिद्ध हुआ। उन्होंने घनानंद के कविताओं को संकलित कर तीन पुस्तकें प्रकाशित की। प्रथम ’घनानंद कवित’ जिसमें 502 कवित्त संग्रहित है। द्वितीय संकलन सन् 1945 में प्रकाशित हुआ जिसमें कवित्त सवैयों के अतिरिक्त घनानंद के 500 पद तथा उनकी ’वियोग बेलि’, ’यमुना यश’, ’प्रीति पावस’ तथा ’प्रेम पत्रिका’ रचनाओं का संग्रह है। इसके बाद सन् 1952 में घनानंद की अन्य 36 कृतियों का संकलन करते हुए ’घनानंद ग्रंथावली’ का प्रकाशन हुआ। काशी नागरी प्रचारिणी महासभा ने 2000 सम्वत् तक की खोज के आधार पर निम्नलिखित कृतियों को उनका माना है- 1. घन आनन्द कवित्त 2. आनन्द घन के कवित्त 3. कवित्त 4. स्फुट कवित्त 5. आनन्द घन जू के कवित्त 6. सुजान हित 7. सुजानहित प्रबन्ध 8. कृपाकन्द निबन्ध 9. वियोग बेला 10. इश्क लता 11. जमुना-जस 12. आनन्द घन जी की पदावली 13. प्रीती पावस 14. सुजान विनोद 15. कविता संग्रह 16. रस केलि बल्ली 17. वृन्दावन सत।

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