घर जाने की खुशी होने के बाद फिर भी गजाधर बाबू का मन क्यों दुखी था
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¿ घर जाने की खुशी होने के बाद फिर भी गजाधर बाबू का मन क्यों दुखी था ?
➲ घर जाने की खुशी होने के बावजूद भी गजाधर बाबू का मन दुखी इसलिए था, क्योंकि वह 35 वर्षों के एक लंबे समय तक रेल्वे के क्वार्टर में रहे थे, इससे उनका वहां के परिवेश से एक आत्मिक लगाव हो गया था। अपने दफ्तर और आसपास के लोगों से आत्मीय, परिचय और स्नेह एवं आदर-सम्मान के संबंध कायम हो गये थे। इस कारण अचानक इन सब को यूं ही छोड़ कर चले जाना और उन सब से नाता टूटने तथा अपना सामान हटाने से क्वार्टर की हुई दुर्दशा देखकर उनका मन दुखी हो उठा था।
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Answer:
पैंतीस वर्षों की नौकरी से रिटायर होकर चलने को तैयार गजाधर बाबू को रेलवे क्वार्टर का वह कमरा , जिसमें उन्होंने इतने वर्ष बिताए थे, उनका सामान हट जाने से कुरूप और नग्न लग रहा था। आँगन में रोपे पौधे भी जान-पहचान के लोग ले गए थे और जगह-जगह मिट्टी बिखरी हुई थी।
अपने जमे हुए सामान पर उन्होंने एक नजर दौड़ाई - दो बक्स, डोलची, बालटी - 'और जब डिब्बा देखा तो गणेशी से पूछ बैठे थे "ये डिब्बा कैसा ?। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दुख, कुछ लज्जा से बोला, "घरवाली ने साथ को कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी को पसंद थे। अब कहाँ हम गरीब लोग, आपकी कुछ खातिर कर पाएँगे।" इस आत्मीयता के कारण घर जाने की खुशी में भी गजाधर बाबू के मन में दु:ख (एक विषाद) का अनुभव हुआ | जैसे एक परिचित, स्नेह, आदरमय, सहज संसार से उनका नाता टूट रहा हो।