घरेलू हिंसा का वर्णन कीजिए
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महिलाओं के प्रति हिंसा एक बहु-आयामी मुद्दा है जिसके – सामाजिक,निजी, सार्वजानिक और लैंगिक पहलू हैं। एक पहलू से निपटें तो तुरंत ही दूसरा पहलू नज़र आने लगता है। घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा का एक जटिल और घिनौना स्वरूप है।
घरेलू हिंसा की घटनाएं कितनी व्यापक हैं, यह तय कर पाना मुश्किल है। यह एक ऐसा अपराध है जो अकसर छुपाया जाता है, जिसकी रिपोर्ट कम दर्ज़ की जाती है, और कई बार तो इसे नकार दिया जाता है। निजी रिश्तों में घरेलू हिंसा की घटना को स्वीकार करने को अकसर रिश्तों के चरमराने से जोड़ कर देखा जाता है। समाज के स्तर पर घरेलू हिंसा की हक़ीक़त को स्वीकार करने से यह माना जाता है कि विवाह और परिवार जैसे स्थापित सामाजिक ढाँचों में महिलाओं की ख़राब स्थिति को भी स्वीकार करना पड़ेगा। इन सबके बावज़ूद भी घरेलू हिंसा के जितने केस रिपोर्ट होते हैं, वे आँकड़े चौंकाने वाले हैं। भारत में हर पाँच मिनट पर घरेलू हिंसा की एक घटना रिपोर्ट की जाती है।
Explanation:
घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप
भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अनुसार, घरेलू हिंसा के पीड़ित के रूप में महिलाओं के किसी भी रूप तथा 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका को संरक्षित किया गया है। भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- इस तथ्य पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा एक गंभीर और बड़ी समस्या है, लेकिन भारत में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। समाज में पुरुषों का वर्चस्व यह विश्वास दिलाता है कि वे घरेलू हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। हाल ही में चंडीगढ़ और शिमला में सैकड़ों पुरूष इकट्ठा हुए, जिन्होंने अपनी पत्नियों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा उनके खिलाफ की जाने वाली घरेलू हिंसा से बचाव और सुरक्षा की गुहार लगाई थी।
बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- हमारे समाज में बच्चों और किशोरों को भी घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। वास्तव में हिंसा का यह रूप महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बाद रिपोर्ट किये गए मामलों की संख्या में दूसरा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा भारत में उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के परिवारों में इसके स्वरूप में बहुत भिन्नता है। शहरी क्षेत्रों में यह अधिक निजी है और घरों की चार दीवारों के भीतर छिपा हुआ है।
बुजुर्गों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- घरेलू हिंसा के इस स्वरूप से तात्पर्य उस हिंसा से है जो घर के बूढ़े लोगों के साथ अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जाती है। घरेलू हिंसा की यह श्रेणी भारत में अत्यधिक संवेदनशील होती जा रही है। इसमें बुजुर्गों के साथ मार-पीट करना, उनसे अत्यधिक घरेलू काम कराना, भोजन आदि न देना तथा उन्हें शेष पारिवारिक सदस्यों से अलग रखना शामिल है।
घरेलू हिंसा के कारण
ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में बाल श्रम, शारीरिक शोषण या पारिवारिक परंपराओं का पालन न करने के लिये उत्पीड़न, उन्हें घर पर रहने के लिये मजबूर करना और उन्हें स्कूल जाने की अनुमति न देना आदि हो सकते हैं।
गरीब परिवारों में पैसे पाने के लिये माता-पिता द्वारा मंदबुद्धि बच्चों के शरीर के अंगों को बेचने की ख़बरें मिली हैं। यह घटना बच्चों के खिलाफ क्रूरता और हिंसा की उच्चता को दर्शाता है।
वृद्ध लोगों के खिलाफ घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों में बूढ़े माता-पिता के ख़र्चों को झेलने में बच्चे झिझकते हैं। वे अपने माता-पिता को भावनात्मक रूप से पीड़ित करते हैं और उनसे छुटकारा पाने के लिये उनकी पिटाई करते हैं।
विभिन्न अवसरों पर परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिये उन्हें पीटा जाता है। बहुत ही सामान्य कारणों में से एक संपत्ति हथियाने के लिये दी गई यातना भी शामिल है।
घरेलू हिंसा के प्रभाव
बालिकाएँ नकारात्मक व्यवहार सीखती हैं और वे प्रायः दब्बू, चुप-चुप रहने वाली या परिस्थितियों से दूर भागने वाली बन जाती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि हिंसा की शिकार हुई महिलाएँ समाजिक जीवन की विभिन्न गतिविधियों में कम भाग लेती हैं।
समाधान के उपाय
शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू हिंसा के सभी पीड़ित आक्रामक नहीं होते हैं। हम उन्हें एक बेहतर वातावरण उपलब्ध करा कर घरेलू हिंसा के मानसिक विकार से बाहर निकल सकते हैं।
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