घटती नौकरियां बढ़ता आरक्षण
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आज़ादी प्राप्त करने के पश्चात भारत सरकार की ओर से कुछ जातियों को प्रगति के अवसर देने के लिए दी गई एक प्रकार की छूट है जिसमें उन्हें सरकारी नौकरियों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, संस्थाओं आदि में कुछ छूट प्राप्त होगीं या उनके लिए सीटें आरक्षित होगीं। आरक्षण एक अच्छा अवसर था, देश की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को प्रगति देने का। अब राजनीति देश के विकास के स्थान पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए की जाने लगी। नेताओं को इन्हीं जातियों में अपनी जीत नज़र आने लगी। उन्होंने सबके अंदर इस तरह के बीज उत्पन्न कर दिये कि समाज मैं बटवारे की स्थिति बन गई और आरक्षण को पूरे 50 वर्ष हो गए हैं। आज के युग में यह समाधान के आधार पर समस्या बनकर उभर रहा है। नौकरियाँ कम हो गई हैं और आरक्षण का जहर समाज में तेज़ी से घुल रहा है। परिणाम समाज में ही बँटवारे की स्थिति बन गई है। इसके बने रहने से सामान्य लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है। वह आरक्षण के अंदर नहीं आते है तो उन्हें कई अवसरों से वंचित होना पड़ रहा है। यह ऐसा समाधान है, जो समस्या का रूप धारण कर रहा है।
आशा है कि आपको यह उत्तर अच्छा लगा होगा ।।...
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✭✮ӇЄƦЄ ƖƧ ƳƠƲƦ ƛƝƧƜЄƦ✮✭
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आज़ादी के बाद भारतीय संविधान में समाजिक तौर पर पिछड़े लोगों को आगे लाने के मकसद से आरक्षण का प्रावधान शामिल किया गया था।
ये प्रावधान भी रखा गया कि हर दस साल पर हालात की समीक्षा की जाएगी और उसके बाद आरक्षण की व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाएगा लेकिन इसकी समीक्षा आज तक नहीं हुई, बल्कि समय गुजरने के साथ आरक्षण का दायरा बढ गया।
इस आरक्षण की व्यवस्था की वजह से पिछले कुछ दशक में समाज में एक नया कुलीन वर्ग पैदा हुआ है।
ये वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण की व्यवस्था से सबसे ज्यादा फायदा हुआ।
ये लोग आर्थिक,सामाजिक और शैक्षिक रूप से काफी आगे निकल चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही लोगों के लिए 1992 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्रीमी लेयर यानि संवैधानिक पद मसलन प्रेसीडेंट, सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के जज और ब्यूरोक्रेसी, पब्लिक सेक्टर कर्मचारी सेना और अर्धसैनिक बल में कर्नल से ऊपर का रैंक पा चुके बैकवर्ड क्लास के लोगों के बच्चों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
इसके अलावा आर्थिक आधार पर भी क्रीमी लेयर तय किया गया।
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धन्यवाद...✊
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आज़ादी के बाद भारतीय संविधान में समाजिक तौर पर पिछड़े लोगों को आगे लाने के मकसद से आरक्षण का प्रावधान शामिल किया गया था।
ये प्रावधान भी रखा गया कि हर दस साल पर हालात की समीक्षा की जाएगी और उसके बाद आरक्षण की व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाएगा लेकिन इसकी समीक्षा आज तक नहीं हुई, बल्कि समय गुजरने के साथ आरक्षण का दायरा बढ गया।
इस आरक्षण की व्यवस्था की वजह से पिछले कुछ दशक में समाज में एक नया कुलीन वर्ग पैदा हुआ है।
ये वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण की व्यवस्था से सबसे ज्यादा फायदा हुआ।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्रीमी लेयर यानि संवैधानिक पद मसलन प्रेसीडेंट, सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के जज और ब्यूरोक्रेसी, पब्लिक सेक्टर कर्मचारी सेना और अर्धसैनिक बल में कर्नल से ऊपर का रैंक पा चुके बैकवर्ड क्लास के लोगों के बच्चों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
इसके अलावा आर्थिक आधार पर भी क्रीमी लेयर तय किया गया।
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