Hindi, asked by Wwwyasengchowtha, 6 months ago

' घड़ी के पुर्जे ' शीर्षक ' मनके ' का मूल प्रतिपाद्य स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने इसके माध्यम से क्या बताना चाहा है |​

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Answered by shishir303
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‘घड़ी के पुर्जे’ शीर्षक वाला लघु निबंध ‘सुमिरिनी के मनके’ शीर्षक के अंतर्गत ‘पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी’ द्वारा रचित एक लघु निबंध है।

इस निबंध का मूल प्रतिपाद्य यह है कि लेखक ने इस निबंध के माध्यम से धर्मचार्यों के दोहरे मापदंड पर व्यंग किया है। लेखक के स्पष्ट करना चाहता है कि धर्माचार्य लोग धर्म की गूढ़ बातों को अपने तक सीमित रख कर लोगों में एक रहस्य की स्थिति पैदा करके रखते हैं। वह धर्म की बारीकियों को सबको बताने का प्रयत्न नहीं करते। इससे वे धर्म के सिद्धांतों के आधार पर लोगों को मूर्ख बनाते रहते हैं और क्योंकि यदि वह धर्म के हर बारीक बिंदु को सब लोगों को समझा देंगे तो सब लोग धर्म का रहस्य समझ जाएंगे और धर्म के ठेकेदारों की दुकान चलने से रह जाएगी। इसलिए वे जनता में धर्म के प्रति एक भ्रम की स्थिति पैदा करके रखते हैं।

लेखक ने घड़ी के पुर्जों का उदाहरण देकर इसे समझाने का प्रयत्न किया है कि जिस तरह घड़ी को खोलकर ठीक करना कोई कठिन काम नहीं होता। बहुत से लोग घड़ी को आसानी से खोल कर ठीक कर लेते हैं और उसे दूसरों को भी सिखा देते हैं। उसी तरह धर्माचार्यों को चाहिए कि वह आम आदमी को भी धर्म के रहस्य के बारे में बताये। इस तरह धर्म का बारीक ज्ञान यदि आम आदमी भी प्राप्त कर लेगा तो कोई भी धर्म के नाम पर उसे मूर्ख नहीं बना सकेगा।

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Answered by payalkhadgawat73
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Ghadi ke purje ke Madhyam se lekhak Ne kin Pravin Kiya Hai

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