Ghayal chidya ke atmakata in hindi 2 paragraph
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एक चिड़िया की कहानी
मैं नन्ही सी चिड़िया...भरती हूँ आज खुले आसमान में लम्बी से लम्बी उड़ान l याद है मुझे आज भी सर्द ठिठूरी कुहासे भरी वो गीली गीली सी सुबह, जब अपनी ही धुन में मस्त, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू में गुम मैं फुदक रही थी एक पगडंडी पर l नम घास की गुदगुदाती छुअन मदमस्त कर रही थी मुझे और मैं अपनी ही अठखेलियों से आह्लादित चहक रही थी l
अचानक गली के आवारा भूखे कुत्तों के झुण्ड में से एक कुत्ते नें झपट कर दबोच लिया था मुझे अपने राक्षसी जबड़ों में....बहुत फढ़फ़ढ़ाये थे मैंने अपने पंख, उस मौत के आगोश से बहार निकलने को... एक बार तो गिर भी गयी थी मैं उस राक्षस के मुख से... सम्हल भी न पायी थी कि पुनः दबोच लिया था उसने मुझे अपने जबड़ों में...
उफ़ ! क्या मंज़र था , ज़िंदगी और मौत की जंग का ?मेरी धड़कन बेतहाशा दौढ़ रही थी..., साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं... शायद रुकने ही वाली थीं..., पंख ज़ख़्मी हो गए थे..., एक पैर भी टूट गया था...,सारा खून सूख चुका था..., नसें भी जम सी गयी थी... और पैने दाँतों के निशान, शायद आज तक मेरे फरों की ओट मैं छुपे हैं..l
मैं नन्ही सी चिड़िया...भरती हूँ आज खुले आसमान में लम्बी से लम्बी उड़ान l याद है मुझे आज भी सर्द ठिठूरी कुहासे भरी वो गीली गीली सी सुबह, जब अपनी ही धुन में मस्त, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू में गुम मैं फुदक रही थी एक पगडंडी पर l नम घास की गुदगुदाती छुअन मदमस्त कर रही थी मुझे और मैं अपनी ही अठखेलियों से आह्लादित चहक रही थी l
अचानक गली के आवारा भूखे कुत्तों के झुण्ड में से एक कुत्ते नें झपट कर दबोच लिया था मुझे अपने राक्षसी जबड़ों में....बहुत फढ़फ़ढ़ाये थे मैंने अपने पंख, उस मौत के आगोश से बहार निकलने को... एक बार तो गिर भी गयी थी मैं उस राक्षस के मुख से... सम्हल भी न पायी थी कि पुनः दबोच लिया था उसने मुझे अपने जबड़ों में...
उफ़ ! क्या मंज़र था , ज़िंदगी और मौत की जंग का ?मेरी धड़कन बेतहाशा दौढ़ रही थी..., साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं... शायद रुकने ही वाली थीं..., पंख ज़ख़्मी हो गए थे..., एक पैर भी टूट गया था...,सारा खून सूख चुका था..., नसें भी जम सी गयी थी... और पैने दाँतों के निशान, शायद आज तक मेरे फरों की ओट मैं छुपे हैं..l
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