ग़ालिब के ऊपर एक टिप्पणी तैयार करे
Answers
Answered by
1
Answer:
सौं उससे पेश-ए-आब-ए से बेदरी है (मैं झूठ बोलूं तो प्यासा मर जाऊं), शायरी को मैंने नहीं इख़्तियाया (अपनाया).
शायरी ने मजबूर किया मैं उसे अपना फ़न क़रार दूं॥
यह शेर गालिब का नहीं है लेकिन ऐसा है मानो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके लिए ही बना हो. उन्हें याद करो तो उनके शेर, नज़्म, फ़ारसी पर पकड़ का उनका गुरूर, मज़ाकिया अंदाज़, बेलौस और उधारी की मारी हुई ज़िंदगी, आम से मोहब्बत, शराब से सोहबत, जुए की लत, डोमनी से इश्क़बाज़ी और न जाने क्या-क्या याद आ जाता है. शायरी के अलावा एक और बात जो उन्हें ‘ग़ालिब ‘बनाती है, वह है उनके ख़त. इतिहासकारों का मानना है कि अग़र ग़ालिब ने शायरी न भी की होती तो उनके ख़त उन्हें अपने दौर का सबसे ज़हीन इंसान बना देते. उन्हें ख़त लिखने का बेहद शौक़ था. बक़ौल ग़ालिब –
Similar questions
Physics,
4 hours ago
India Languages,
4 hours ago
Social Sciences,
4 hours ago
English,
8 hours ago
English,
8 months ago
Science,
8 months ago