Hindi, asked by vikashrastogi, 11 months ago

Giridhar kavirai Ne Kundli ke Madhyam se vyavaharik Gyan se Kis Tarah parichit karaya hai​

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Answered by shishir303
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‘गिरिधर कविराय’ हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। अपनी कुंडलियों को माध्यम से गिरिधर कविराय दैनिक जीवन की सामान्य बातों को बड़े रोचक ढंग पेश किया है और सीधी-सरल भाषा में जीवन के व्यवहारिक ज्ञान को सिखाने का प्रयत्न किया है।

गिरिधर कविराय नीति, वैराग्य और जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को अपनी कुंडलियों का विषय बनाया था। उन्होंने बेहद ही सरल भाषा में जीवन की व्यवहारिकता को समझाते हुए नीतिपरक बातें कहीं हैंं, जिससे आम जनमानस में उनकी कुंडलियां बेहद लोकप्रिय हुईं।

उदाहरण के तौर पर उनकी पहली कुंडली को लेते हैं।

लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिए संग।

गहरि नदी नारी जहां, तहां बनावे अंग।।

जहां बचावे अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।

दुश्मन दावागीर होय तिनहूँ को झारे।।

कह गिरधर कविराय, सुनो हो दूर के बाठी।

सब हथियार ना छाँड़ि, हाथ में है लीजे लाठी।।

इस कुंडली में ‘गिरिधर कविराय’ ने लाठी के गुणों के महत्व को समझाया है। एक ही लाठी से अनेक काम लिये जा सकते हैं। ये गहरी नदी को पार करने में सहायता करती है, इसकी सहायता से नदी की गहराई को नापा जा सकता है। रास्ते में अगर कुत्ता काटने को दौड़े तो लाठी से स्वयं की रक्षा की जा सकती है। दुश्मन अगर आक्रमण कर दे तो लाठी से उसका मुकाबला किया जा सकता है। इसलिये कवि ने सीधा साफ संदेश दिया है कि सारे हथियारों को छोड़ो अगर केवल लाठी को लेकर ही चलोगे तो बहुत सारे कार्यों को साध सकते हो।

एक और कुंडली का उदाहरण लेते हैं....

गुन के गाहक सहस, नर बिन लहे न कोय।

जैसे कागा कोकिला, शब्द सुने सब कोय।।

शब्द सुने सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।

दोऊ एक रंग, काग भये सब अपावन।

कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन।

बिन गुन लहै न कोय, सहस गाहक गुन के।।

इस कुंडली में ‘गिरिधर कविराय’ कौवे और कोयल का उदाहरण देकर गुणों के महत्व पर प्रकाश डाला है। कवि का कहना है कि रंग-रूप का महत्व नही होता, गुणों का महत्व होता है। कौवे और कोयल का रंग रूप एक जैसा है पर उनके गुणों में अंतर है। कोयल का स्वर जहां अत्यन्त मधुर होता है, वही कौवे का स्वर बेहद कर्कश होता है। इस कारण रंग रूप समान होने के बावजूद लोग केवल कोयल को ही पसंद करते हैं, कौवे को नही। क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। यहां पर कवि सीधा संदेश दिया है कि गुणों को अपनाओ, रंग-रूप को महत्व न दो।

इस प्रकार अन्य कुंडलियों में भी ‘गिरिधर कविराय’ ने नीतिपरक बातें कहकर जीवन की व्यवहारिकता को बेहद सरल व रोचक ढंग से समझाने का प्रयत्न किया है।

Answered by Anonymous
17

Answer:

गिरिधर कविराय’ हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। अपनी कुंडलियों को माध्यम से गिरिधर कविराय दैनिक जीवन की सामान्य बातों को बड़े रोचक ढंग पेश किया है और सीधी-सरल भाषा में जीवन के व्यवहारिक ज्ञान को सिखाने का प्रयत्न किया है।

गिरिधर कविराय नीति, वैराग्य और जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को अपनी कुंडलियों का विषय बनाया था। उन्होंने बेहद ही सरल भाषा में जीवन की व्यवहारिकता को समझाते हुए नीतिपरक बातें कहीं हैंं, जिससे आम जनमानस में उनकी कुंडलियां बेहद लोकप्रिय हुईं।

उदाहरण के तौर पर उनकी पहली कुंडली को लेते हैं।

लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिए संग।

गहरि नदी नारी जहां, तहां बनावे अंग।।

जहां बचावे अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।

दुश्मन दावागीर होय तिनहूँ को झारे।।

कह गिरधर कविराय, सुनो हो दूर के बाठी।

सब हथियार ना छाँड़ि, हाथ में है लीजे लाठी।।

इस कुंडली में ‘गिरिधर कविराय’ ने लाठी के गुणों के महत्व को समझाया है। एक ही लाठी से अनेक काम लिये जा सकते हैं। ये गहरी नदी को पार करने में सहायता करती है, इसकी सहायता से नदी की गहराई को नापा जा सकता है। रास्ते में अगर कुत्ता काटने को दौड़े तो लाठी से स्वयं की रक्षा की जा सकती है। दुश्मन अगर आक्रमण कर दे तो लाठी से उसका मुकाबला किया जा सकता है। इसलिये कवि ने सीधा साफ संदेश दिया है कि सारे हथियारों को छोड़ो अगर केवल लाठी को लेकर ही चलोगे तो बहुत सारे कार्यों को साध सकते हो।

एक और कुंडली का उदाहरण लेते हैं....

गुन के गाहक सहस, नर बिन लहे न कोय।

जैसे कागा कोकिला, शब्द सुने सब कोय।।

शब्द सुने सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।

दोऊ एक रंग, काग भये सब अपावन।

कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन।

बिन गुन लहै न कोय, सहस गाहक गुन के।।

इस कुंडली में ‘गिरिधर कविराय’ कौवे और कोयल का उदाहरण देकर गुणों के महत्व पर प्रकाश डाला है। कवि का कहना है कि रंग-रूप का महत्व नही होता, गुणों का महत्व होता है। कौवे और कोयल का रंग रूप एक जैसा है पर उनके गुणों में अंतर है। कोयल का स्वर जहां अत्यन्त मधुर होता है, वही कौवे का स्वर बेहद कर्कश होता है। इस कारण रंग रूप समान होने के बावजूद लोग केवल कोयल को ही पसंद करते हैं, कौवे को नही। क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। यहां पर कवि सीधा संदेश दिया है कि गुणों को अपनाओ, रंग-रूप को महत्व न दो।

इस प्रकार अन्य कुंडलियों में भी ‘गिरिधर कविराय’ ने नीतिपरक बातें कहकर जीवन की व्यवहारिकता को बेहद सरल व रोचक ढंग से समझाने का प्रयत्न किया है।

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