Give me 3 Rahim me done with meaning
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय.रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय.अर्थ :मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा.—रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय.टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय.अर्थ : रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटेहुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है.—रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि.जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि.अर्थ : रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए. जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है?—जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग.चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग.अर्थ : रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती. जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते.—रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार.रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार.अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूटजाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए.—जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं.गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं.अर्थ : रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती.—जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह.धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह.अर्थ : रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़तीहै. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए.—खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय.रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय.अर्थ : खीरे का कडुवापन दूर करने के लिएउसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है. रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है.—दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं.जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं.अर्थ : कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती।लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है.—
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