Hindi, asked by rajpalbandra1322, 1 month ago

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Answered by BANGTANARMYlucky
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Explanation:

. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं।

निम्नलि.खित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्दृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं –

1. वृद्ध मुंशी 2. वकील 3. शहर की भीड़

उत्तर:- 1. वृद्ध मुंशी – वृद्ध मुंशी समाज में धन को महत्ता देनेवाले भ्रष्ट व्यक्ति है। वे अपने बेटे को ऊपरी आय बनाने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं – ‘मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।’

2. वकील – आजकल जैसे धन लूटना ही वकीलों का धर्म बन गया हैं। वकील धन के लिए गलत व्यक्ति के पक्ष में लड़ते हैं। मजिस्ट्रेट के अलोपीदीन के हक में फैसला सुनाने पर वकील खुशी से उछल पड़ता है।

3. शहर की भीड़ – शहर की भीड़ दूसरों के दुखों में तमाशे जैसा मज़ा लेती है। पाठ में एक स्थान पर कहा गया है – ‘भीड़ के मारे छत और दीवार में भेद न रह गया।’

4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढि़ए –

नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहि.ए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती।

ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

1. यह किसकी उक्ति है?

2. मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?

3. क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?

उत्तर:- 1. यह उक्ति बूढ़े मुंशीजी की है।

2. मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है क्योंकि वह महीने में एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। वेतन भी एक ही दिन आता है जैसे-जैसे माह आगे बढ़ता है वैसे वह खर्च होता जाता है।

3. जी नहीं, मैं एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत नहीं हूँ। किसी भी व्यक्ति को भ्रष्टाचार से दूर रहना । एक पिता अपने बेटे को रिश्वत लेने की सलाह नहीं दे सकता और न देनी चाहिए।

5. ‘नमक का दारोगा‘ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- ईमानदारी का फल – ईमानदारी का फल हमेंशा सुखद होता है। मुंशी वंशीधर को भी कठिनाइयों सहने के बाद अंत में ईमानदारी का सुखद फल मिलता है।

भ्रष्टाचार और न्याय व्यवस्था – इस कहानी में दिखाया गया है कि न्याय के रक्षक वकील कैसे अपने ईमान को बेचकर गलत आलोपीदीन का साथ देते हैं।

6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?

उत्तर:- कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे निम्न कारण हो सकते हैं –

• उसकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से अलोपीदीन प्रभावित हो गए थे।

• वे आत्मग्लानि का अनुभव कर रहे थे।

7. दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?

उत्तर:- वंशीधर का ऐसा करना उचित नहीं था। मैं अलोपीदीन के प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए उन्हें नौकरी के लिए मना कर देता क्योंकि लोगों पर जुल्म करके कमाई हुई बेईमानी की कमाई की रखवाली करना मेरे आदर्शों के विरुद्ध है।

8. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?

उत्तर:- वर्तमान समाज में ऐसे पद हैं – आयकर, बिक्रीकर, सेल्सटेक्स इंस्पेक्टर, आदि। इन्हें पाने के लिए लोग लालाहित रहते होंगे क्योंकि इसमें ऊपरी कमाई (रिश्वत) मिलने की संभावना ज्यादा होती है।

9. ‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए –

1. जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।

2. जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।

3. ‘पढ़ना-लिखना‘ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा:साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)

उत्तर:- 1. जब मैंने देखा पढ़े-लिखें लोग गंदगी फैला रहे है तो मुझे उनका पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा।

2. जब हम पढ़े-लिखें लोगों को उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की योजना बनाते देखते हैं तो हमें उनका पढ़ना-लिखना सार्थक लगता हैं।

3. ‘पढ़ना-लिखना’ को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया हैं। नहीं, इनमें अंतर है।

10. लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?

उत्तर:- यह कथन समाज में लड़कियों की उपेक्षित स्थिति को दर्शाता है। लड़कियों को बोझ माना जाता हैं। उनकी उचित देख-भाल नहीं की जा सकती।

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